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पाथा : ५६२-५३३
नरतिर्यग्लोकाधिकार
दारगुहुन्छवासा भह बारस पष्वदं व दहचं । बज्जळवासकवाट वेडगुहा दुगुभयंते ।। ४९२ ।। द्वारोच्छ्रयन्यासी मष्ट द्वादश पर्वत इव दीर्घत्वं । वज्रव्यास कपाटद्वयं विजयार्ध गुहा द्विकोभयान्ते ॥ १६२ ॥
दार द्वारयोः प्रत्येक मुच्छ्रयपासाव योर्वोर्घत्वं विजयार्थगुहायोभयान्ते वज्रमयषड्यो मध्यासकवादद्वयमस्ति ॥ ५६२ ।।
द्वावश १२ योजनी पर्वतविस्तारवद्गुह ५०
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गाथार्थ :- गुफा ओर गुफा के द्वार की ऊंचाई आठ आठ योजन तथा दोनों का ध्यास ( चोड़ाई) बारह बारह योजन है। विजयाचं पर्वत की चौड़ाई सट्टा ( ५० योजन ) ही खण्ड प्रपात गुफा की लम्बाई है । अर्थात् खण्ड प्रपान गुफा ५० योजन लम्बी है तथा इसी गुफा के दोनों अम्तिम द्वारों के दोनों कपाट छह-छह योजन चौड़े और वज्रमयी है | ५६२ ॥
विशेषार्थ :- विजयाचं पर्वत की खण्ड प्रपात गुफा की ऊंचाई योजन चौड़ाई १२ योजन और लम्बाई विजयाधे की चौड़ाई सदृश अर्थात् ५० योजन है। इसी प्रकार गुफा द्वार की ऊंचाई योजन और चौड़ाई बारह (१२) योजन प्रमाण है। विजयार्धं की इस गुफा के दोनों अन्तिम द्वारों पर प्रत्येक कपाट ६ योजन चोड़े और वज्रमयो हैं ।
उम्भग्गणिग्गणदी गुदम झगकुंडजादु पुचवरे । जो दुगदाओ पुति उभयंतदो गंगं ।। ५९३ ।। उम्मग्ननिमग्ननद्यो गुहामध्यगकुण्डजे तु पूर्वापरस्याम् । योजनद्वयदये स्पृशतः उभयान्ततः गंगाम् ॥ ५९३ ॥
एक कपाट की चौड़ाई ६ योजन है, अतः दोनों कपाट १२ योजन चौड़े हुए। १२ योजन हो चौड़ा है, इस प्रकार कपाटों की ऊंचाई योजन और चौड़ाई १२
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कपों की चौड़ाई १२ योजन है तब उसकी देहली की लम्बाई भी बारह योजन होगी । अतः उसके नीचे
से ८ योजन चौड़ी गङ्गा का निकल जाना स्वाभाविक हो है ।
गुफा का द्वार भी योजन है। जब
उम्मा | उम्मग्ननिमग्ननयों पूर्वापरविशि गुहामध्यगतकुण्डावुरपद्यो भयान्ततः घोषन पर्व सत्यी गङ्गां स्पृशसः ॥ ५९३ ॥
गायार्थ :- विजयार्ध पर्वत को गुफा के ठीक मध्य में पूर्व पश्चिम दोनों तटों से निकल कर दो दो योजन चोड़ी होती हुईं जन्मग्ना और निमग्ना दोनों नदियां दोनों ओर से गंगा को स्पर्श करती है । ५८३ ।।