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क्रमांक
पर्वतों के नाम
त्रिलोकसाथ
कुण्ड, द्वीप, पर्वत एवं श्री आदि देवियों के ग्रहों का प्रमाण
पर्वतों के कुण्डों के मूल में स्थित मध्य द्वीपों "कुण्डों
की
¦
योजनों में योजनों में
गहरान
१०
२० १२० १
४०
२४० २
२४०२
२० १२० १
चौड़ाई
ऊंचा
चोड़ाई
हिम०
२ महा हि०
३ निषध
४ नील
x) रुक्मी
६ शिखरिन् १० । ६०.
४०
|---
७
द्वीपों के मध्य स्थित पर्वतों की योजनों में
८
ऊँचाई
व्यास
नौद
मध्य में
ऊपर
पर्वतों के ऊपर स्थित श्री आदि
देवियों के गृहों की धनुषों में
व्यास
ऊई
नीचे
मध्य
ऊपर
अभ्यन्तर
हातू दक्षिणतः गरखा खण्डप्रपातनाम गुहाम् । मष्टयोजनविस्तीर्णा विनिर्गता कुतपास्तात् ॥ ५९१ ।।
पापा: १९१
अथ कुण्डात् निर्गत्य गच्छन्त्या गंगायाः स्वरूपं तत्स्थानस्वरूपं च गाथाषट्केनाह-
कुंडादो दक्खिणदो गत्ता खंडप्पवादणामगुहं ।
महजो त्रित्थिण्णा विणिमाया कुदवहिडादो ||५९१ ।।
गृह द्वारों
की
धनुषों में
१०
४ |२| १२००० ३००० | २००० १००० ७५०
१६ २०
८ ४ २,४००० ६००० ४०० १००० १५०० १६०८०
३२
४० १६ ८ ४८००० १२०००/८००० ४००० ३००० ३२० १६० ३९ | ४० १६८४८००० १२००० ८००० ४००० ३००० ३२० १६०
kF २०
८ ४ २ ४००० ६००० ४००० २००० १५०० १६० ८०
२ | १|२००० ३००० २००० १००० ७५० १०
| ४
ऊँचाई
व्यास
८०
४०
50 ४.
कुंडा । कुण्डा प्रविश्याष्ट्रपोजनविस्तीर्खा सती पुनः कुतपादधस्तावेव विनिर्गता ॥ ५६१ ॥
कुण्ड से निकल कर जाती हुई गंगा का स्वरूप एवं उसके स्थान का स्वरूप ग्रह गांथानों द्वारा कहते हैं
वशिलाभिमुखं गत्वा विजयार्धस्य खण्डप्रपातनागृह कुलपावचस्ता
गाथार्थ :- गङ्गा नदी कुण्ड से निकलकर दक्षिण की ओर बहती हुई विजपापर्यंत को खण्डप्रपात नाम गुफा की कुतप ( देहली ) के नीचे से निकल कर आठ योजन चौड़ी होती हुई गुफा के तर द्वार की देहली ( कुतप ) के नीचे होकर जाती है ।। ५६१ ।।