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________________ 1 -7 गाया । ४६६ से ५९० नर तिर्यग्लोकाधिकार YES जटा ही है मुकुट जिनका ऐसे जिन बिम्ब पर मानों अभिषेक करने का ही है मन जिसका ऐसी गंगा मस्तक पर गिरती है ।। ५८६ से ५९० ।। विशेषा:- भरत क्षेत्र में हिमवान् पर्वतको २५ योजन छोड़कर कालाकी उपमाको धारण करती हुई दश योजन व्यास वाली गंगा नदी, गोल कुण्ड में स्थित जिन मस्तक पर गिरती है । हिमवान् पर्वत के मूल में जो १० योजन गहरा ६० योजन चौड़ा गोल कुण्ड है, उसके मध्य में जल से ऊपर अक्षं योजन ऊँचा और ८ योजन चौड़ा गोल टापू ( द्वीप ) है । उस द्वीप के मध्य में वञ्चमयी १० योजनांचा पर्वत है। उस पर्वत का व्यास नीचे चार योजन. मध्य में दो योजन और ऊपर एक योजन प्रमाण है, उस पर्वत के ऊपर श्री देवी का गृह अर्थात् गंगा कूट है, जिसका व्यास नीचे ३००० धनुष, मध्य में २००० धनुष और ऊपर १००० धनुष है। इसकी ऊंचाई का प्रमाण २००० धनुष है तथा इस गृह (गंगाकूट ) का अभ्यन्तर व्यास पाँच सौ और उसके प्रधं भाग को मिलाकर अर्थात् (५०० + २५० }= ७५० धनुष है। इस श्री गृह के द्वार का व्यास ४० धनुष और उदय ५० धनुष है जिसके दोनों किवा वज्रमयी हैं। श्री गृह का प्रमाण सर्वत्र धनुष प्रमित जानना चाहिए। इस श्री गृह अर्थात् गंगाकूट के अग्रभाग पर स्थित कमलकणिका में जो सिंहासन है उस पर है अवस्थिति जिनकी तथा जटा हो है मुकुट जिन जिनेन्द्रकी रखने वाली गंगा नदी उनके मस्तक पर गिरती है । ६३
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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