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________________ ४९६ त्रिलोकसार भूमध्याप्रो व्यासः चतुः ह्निकं एकं श्रीगेहमुपरि तद्व्यासः । चापानां त्रिद्विकं सहस्रमुदयस्तु द्विसहस्रम् ॥ ५६६ || पञ्चशतदलं ववन्तरं तद्द्वारं चत्वारिंशत् व्यासं द्विगुणोदयं । सर्वत्र धनुः ज्ञेयं दो पाटों व वज्रमयो । ४८९ || श्रीगृहशीर्ष स्थिताम्बुजकणिकासिहासनं जटामुकुटं । जिनमभिषेक्त मनातील मलके गंगः ॥ ५९० ॥ गाया। ५८६ से ३६० भर मरते पकृति २५ योजनमचलं मुश्श्वा काहलोपमा बशयोजनव्यासा सती गिरिमूले योजनायगावषट्टियोजनविस्तारखुतं कुण्डमति ॥ ५८६ ॥ म मध्ये जलादुपरि योजनार्थमुद्गतः द्विघन व्यासः दोपोहित तन्मध्ये बज्रमयो दशयोजनोत्सेधो गिरिरस्ति तस्य ।। ५८७ ॥ सूम । भूय्यासो मध्यव्यासो मप्र व्यासश्च यथासंख्यं योजनानि चत्वारि द्वि एकं स्युः । तथ्य गिरेदपरि षीगृहमस्ति । तद्भूमध्याप्रष्वासश्चापानां त्रिसहस्र द्विसहस्रमेकसहस्र उदवस्तु द्विसहस्र स्यात् ॥ ८८ ॥ पण । श्रीगृहाभ्यन्तरविस्तारः पश्चशततद्दलयोमिलितप्रमाणं स्यात् । तस्य भीगृहस्थद्वारं वारिंशद्व्यास ४० तद्विगुण ८० वयं स्यात् सर्वत्र श्रीगृहमानं धनुः प्रमितं ज्ञेयं तस्य ही कपाटी वाम ।। ५८१ ॥ सिरि। श्रीगृहशीर्षस्थिताम्बुजकरणकासिहासनं जटामुकुटं निमभिषिक्त मना इव जिनमस्त गङ्गासी ॥ ५६ ॥ अब गिरी हुई नदी और उसके गिरने का स्वरूप पाँच गाथाओं द्वारा कहते हैं : = —- गाथार्थ :- भरत क्षेत्र में पञ्चकृति - ( पच्चीस योजन) हिमवान् पर्वत को छोड़ कर काहला ( एक प्रकार का बाजा ) के आकार को धारण करने वाली तथा दश योजन है विस्तार जिसका ऐसी गंगा हिमवान् पर्वत के मूल में दश योजन गहरे और साठ योजन चौड़े गोल कुछ में गिरती है । उस कुण्ड के मध्य में जल से ऊपर अर्थ योजन ऊंचा द्विषन बाठ योजन चौड़ा गोल द्वीप ( टापू ) है । उस द्वीप के मध्य में वज्रमयी- दश योजन ऊंचा पर्वत है। उस पर्वत का व्यास अर्थात् नीचे, मध्य में एवं ऊपर पण चार दो और एक योजन है। उस पर्वत के ऊपर श्री देवी का गृह है । वह गृह [ भू. मध्य और अग्रे क्रमशः ] तीन हजार, दो हजार और एक हजार धनुष व्यास वाला है । त उसकी ऊंचाई दो हजार धनुष है। उस श्री देवीके गृहका अभ्यन्तर व्यास पाँच सौ और उसके आधे भाग को मिलाकर अर्थात् (५०० + २५० ) - साढ़े सात सौ धनुष प्रमाण है। तथा उस गृह के द्वार का व्यास चालीस धनुष और ऊंचाई अस्सो धनुष है जिसके दोनों किवाड़ वज्रमयी है। का प्रमाण सर्वत्र धनुष प्रमित है । श्रीगृह के अप्र भाग पर कमल कर्णिका में इस प्रकार श्रीगृह सिहासन पर स्थित
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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