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________________ गाया। ५२-५५३-५८४ नरतियग्लोकाधिकार ४६३ गावार्थ :- गंगादि दो और रोहितास्या ये तीन नदियां पद्म द्रह से, सुवर्णकूला, रक्ता और रक्तोदा ये तीन नदियो अन्तिम पुण्डरीक हद से, तथा शेष दहों से दो दो नदियां उत्पन्न हुई हैं। नदियों का बहाव नाभिगिरि को आधा योजन छोड़ कर है ।। ५८१ ॥ विशेषार्य :--पद्म ह्रद से गंगा, सिन्धु और रोहितास्या ये तीन, महापद्म हद से रोहित और हरिकान्ता, तिगिञ्छ हद से हरित और सीतोदा, केसरीलद मे सीता और नरकान्ता, महापुण्डरीक से नारी और रूप्यकूला तथा अन्तिम पुण्डरीक हद से सुवर्णकूला, रक्ता और रक्तोदा ये तीन नदियाँ निकली है । गङ्गा, सिन्धु, रक्ता और रक्तोदा इन चार नदियों को छोड़ कर शेष नदिया नाभिगिरि को आधा योजन छोड़ कर जाती हैं। भरत रावत क्षेत्रों में नाभिगिरि का अभाव है, अतः गंगा, मिन्धु, रक्ता और रक्तोदा इन चार नदियों को छोड़ कर शेष नदियाँ नाभिगिरि को आधा योजन दूर से छोड़कर प्रदक्षिणा रूप जाती हैं। यथा हैमवत क्षेत्र में विजटावान् और हरिक्षेत्र में पद्मवान पर्वत हैं, जो नाभिगिरि नाम से प्रसिव हैं. अतः रोहित, रोहितास्या और हरित् द्रिकान्ता ये दो दो महान दियो इन दोनों नाभि पर्वतों से आधा योजन इधर रहकर प्रदक्षिणा रूप से जाती हैं । बिदेह क्षेत्र में सुमेह ( नाभिगिरि ) है ही। रम्यक क्षेत्र में ओ गंधवान और हैरपयवत क्षेत्र में विजया नाम के पर्वन हैं. वे भी नाभिगिरि नाम से प्रसिद्ध है, अतः सीता सोतोदा सुमेह से, नारी-नरकान्ता गन्धवान् से और सुवर्णकूला-रूप्यकूला विजयाधं ( नाभिगिरि ) से आधा योजन इधर रह कर अधं प्रदक्षिणा रूप से जाती हैं। अथ तत्र गंगाया उत्पत्ति तद्गमनप्रकारं च गापात्रयेणाह बजमुहदो जणिचा गंगा पंचसयमेत्थ पुत्र मुहं । गचा गंगाकूडं मविपच, जोयणदण || ५८२ ।। दक्षिणमुई बलिचा जोयणतेवीससहियपंचसयं । साहियकोसद्धजुदं गधा मा विविहमणिरूवा ।।५८३।। कोसदुगदीहबहला वसहायारा य जिभियालंदा । अजोयणं सकोस तिस्से गंतूण पडिदा सा ।। ५८४ ।। वज्रमुखतः जनित्वा गंगा पञ्चशतमत्र पूर्वमुखं । गत्वा गंगाकूटं अप्राप्य योजनार्धन ।। ५८२ ॥ दक्षिण मुखं बलित्वा योजनत्रयोविंशतिसहितपश्चगतम् । माधिककोशाधंयुतं गत्वा या विविधमणिरूपा । ५८३ ॥ क्रोशद्वयदोघबाहल्या वृषभाकारा च जिद्विकाल्दा।। पड़योजनं सकोशं तस्यां गत्वा पतिता सा ॥ ५८४ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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