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________________ पाया : ५७५-५७६ नरतियं ग्लोकाधिकार gee उत्तरदिसि कोणदुगे सामाणिकमल चदुसदस्समदो | अभंवरे दिसं परि पु तेजियमंगरक्खवासादं ।। ५७५ ॥ यन्मंतरदिसि विदिसे पडिहारमहरमयकमलं । मणिदलजलसमणा परिवारं पउममाणद्धं ।। ५७६ ।। उत्तरदिशि को द्विके सामानिककमलानि चतुः सहस्रमतः । अभ्यन्तरे दिशं प्रति पृथक् तावन्मात्राङ्गरक्षप्रासादाः || २७५ ।। अभ्यन्तरदिशि विदिशि प्रतिहारमहत्तराणामष्टशतकमलानि । ममता परिवारं पद्ममानार्धम् ॥ ५७६ ॥ उत्तर । उत्तरदिग्भागस्थित वायव्येशन कोरढये सामानिकदेवानां कमलागि चतुःसहस्राणि सन्ति प्रतोऽभ्यन्तरे प्रतिविशं पृथक् पृथक् तावन्मात्रा ४००० रक्षणासादाः स्युः ।। ५७५ ॥ तर तेभ्यः पय्यन्तरविशि १४ विविशि च १३ प्रत्येकमेवं सति प्रतिहार महतरालामष्टोत्तरशतकमलानि मणिमयबलानि जलोत्सेबमनालानि सन्ति परिवारविशेषस्वरूपं स मुख्यपद्मप्रमाणार्थ स्यात् ॥ ५७६ ॥ गाथा :- उत्तर दिशा के दोनों कोनों में अर्थात् ऐशान और वायव्य में सामानिक देवों के चार हजार कमल है, इन कमलों के भीतरी भाग में (मूल कमल की ओर ) चारों दिशाओं में घाय चार हजार ही तनुरक्षकों के कमल हैं। अर्थात् उन पार्थिव कमलों पर भवन बने हुए हैं। उन अङ्गरक्षकों के कमलों के अभ्यन्तर भाग में (मूल कमल की ओर ) चारों दिशाओं एवं चारों विदिशाओं में प्रतीहार महत्तरों के एक सौ आठ कमल हैं। ये सब परिवार कमल मणियों से रचित हैं। इन सबके व्यासादि का प्रमाण पद्म (मूल ) कमल के प्रमाण अर्ध अर्थ है। परिवार कमलों के नाल की ऊंचाई जल की गहराई के सदृश ही है ।। ५७५, ५७६ । विशेषार्थ :- उत्तर दिशा के दोनों कोण अर्थाद मूल कमल को ऐशान मोर वायव्य दिशा में सामानिकदेवों के कुल ४००० कमल हैं । इनसे अभ्यन्तर अर्थात् मूल कमल की ओर पृथक पृथक चारों दिशाओं में चार चार हजार अङ्गरक्षकों के कमल है। इनके भी अभ्यन्तर भाग में अर्थात् मूल कमल को और चारों दिशाओं में १४. १४ और विदिशाओं में १३१३ इस प्रकार प्रतिहार महत्तरों के कुल १०८ कमल हैं। सभी परिवार कमल मणिमय है और इन प्रत्येक कमलों पर परिवार देवों के एक एक ही मणिमय भवन बने हुए हैं। इन परिवार कमलों का सम्पूर्ण ( विशेष ) स्वरूप अर्थात् व्यासादिक का प्रमाण प्रधान पद्म के प्रमाण से आधा आधा है। इनके नाल की ऊंचाई सरोवर की गहराई के प्रमाण ही है। अर्थात् नाल जल के बराबर ऊँची है, जल से ऊपर नहीं है । ६२
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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