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त्रिलोकसार
रापा।१७४ पाणीय । पानोकदेवाना गेहकमलानि सप्त पश्चिमाया दिशि संति ते मानीकाः गमावरपमगन्धर्षनृत्यपवातय इति सप्तापि प्रत्येक बापमाणस्वसामानिकसम ४... प्रपमानीकात द्विगुणगुणसप्तकायुताः॥ ५७४ ॥
गाथार्थ :-हाथी, घोड़ा, रथ, बैल, गन्धर्व, नृत्यकी और पयारे इन सात अनीकों के अपने अपने भवनों सहित सात कमल श्री देवी के कमल की पश्चिम दिशा में स्थित हैं। प्रत्येक अनीक सात सात कक्षाओं से युक्त है। [ प्रथम कक्ष के प्रमाण से ] द्वितीयादि कक्षों के देवों का प्रमाण दूना दूना है ॥ ५७४ ॥
विशेषापं:-हाथी, घोड़ा, रथ, बैल, गम्धवं, नृत्य की और पयादा ये सात प्रकार के अनीक हैं। इन सात अनीकों के सात भवन सात कमलों पर हैं, और वे कमल श्री देवी के कमल को पश्चिम दिशा में स्थित हैं। प्रत्येक अनीक सात साल कक्षामों से युक्त है। आगे कही जाने वाली सामानिक देवों की ४.०० संख्या प्रमाण ही प्रथम अनीक की प्रथम कक्षा का प्रमाण है, इसके आगे यह प्रमाण दूना दुना होता गया है।
जिसका प्रमाण निम्न प्रकार है
श्री देवी की ७ अनीकों का सम्पूर्ण प्रमाण
गजानीक
अश्वानीक
रथाऽनीक । वृषभानीक
गन्धवानीक
नृत्यानीक
पाति
४०००
४०००
४०००
४०००
E.००
८०००
500.
।
5000
१६०००
१६०००
१६०००
३२०००
३२... ६४०००
६४०००
३२०५० २४... १२८०..
३२००० ६४.०० १२८०.. २५६०००
। ३२०००
६४००० १२८... २५६०००
१२८०००
१२८०.०
३२००० ६४००. १२८०.. २५६००० ५०००००
१२८०००
२५६०००
२५५०००
२५६०.
२५६०.०
५०८०..
५०८०००
५.८०००
५०००. पोग
५०८००० -३५५६०..