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________________ गाया।३ लोकसामान्याधिकार गाथार्ष:-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, विमानवासी, मनुष्यलोक और तियंग लोक में देवेन्द्र एवं चक्रवर्ती आदि से पूजित जितने जिनमन्दिर हैं उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ ॥ २॥ विशेषार्य :-इस त्रिलोकसार ग्रन्थ में इसी क्रम से भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी, वैमानिक, मनुष्यलोक और तिर्यग्लोक इन पांच अधिकारों का वर्णन किया गया है ।।२।। गग तानि विनाम कुशागामामाह सव्वागासमणतं तस्स य नहुमज्झदिसमागम्हि । लोगोसंखपदेसो जगसेदिघणप्पमाणो हु ॥ ३ ॥ सकिाशमनंतं तस्य च बहमध्यदेशभागे । लोकोऽसंख्यप्रदेशो जगच्छ्रणिधनप्रमाणो हि ॥३॥ सम्व । सर्वाकाशमनंतं तस्य च महमध्यदेशभागे, बहवः प्रतिशयिताः रचनीकृताः प्रसंस्पाता पाकाशस्य' मध्यवेशा यस्य स बहुमध्यदेशः स धासौ भागश्च खण्डः तस्मिन् बहुमध्यदेशभागे । पथवा बहवः प्रष्टो गोस्तनाकाराः माकाशस्य मष्पवेशाः मध्यदेशे मस्य स तथोक्तस्तस्मिन् । लोकोऽपसंख्यप्रवेशः सागणार घनप्रमाणः खप्तु ॥५॥ उपयुक्त जिनभवन कहाँ हैं ? ऐसी शंका होने पर लोक का स्वरूप कहते हैं :--- गाथार्य :-सर्वाकाश अनन्तप्रदेशी है, और उसके बदमध्य भाग में असंख्यात प्रदेशो लोक है, जो जगच्छणी के घनप्रमाण है ।। ३ ।। विशेषार्थ :-अनन्तप्रदेशी सब काश के वहमध्य भाग में अतिशय रचनारूप जो असंख्यात प्रदेश हैं, वही आकाश के खण्डस्वरूप लोक है । अथवा जो गोस्तनावार आठ प्रदेशा आकाश के मध्य में हैं, वे ही आठ प्रदेश जिसके मध्य में हैं, ऐसे आकाश के खण्ड को लोक कहते हैं। लोक असंख्यात प्रदेशी है और वह निश्चयसे जगच्छ्रेणी के घनप्रमाण है। लोक के असंख्यात प्रदेश समसंन्यास्वरूप है, अतः एक प्रदेश मध्य न बन कर दो प्रदेशों का मध्य बनता है और लोक घनस्वरूप है, अतः दो प्रदेशों का घन रूप क्षेत्र आठ प्रदेशप्रमाण है। इन गोस्तमाकार आठ प्रदेशों की रचना निम्न प्रकार है : [ चित्र अगले पृष्ठ पर देखिये ] १ वा आकाशस्य ( ब०, ५०)। २ जगच्छृ णी ' धन = ३७३ प्रमाणः ( २०, प.)
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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