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गाथा : ५७१-५७०
नरतिर्यग्लोकाधिकार
कमलदलजलविणिग्गयतुरियुदयं वास कण्णिय तत्प। सिरिरयणगिहं दिग्धति कोसं तस्सद्धमुभयजोगदलं || ५७१ ।। कमलदलण लविनिगंततुर्योदयः व्यासः करिणकायाः तत्र ।
श्रीरत्न गृहं दैयंत्रिक कोशः तस्यार्ध मुभययोगदल ॥ ५७१ ।। कमल । कमलोस्सेषामेव नालस्य अलविनिर्गतिः कमलचतुर्थाश एव उपयध्यासो करिणकायाः । तत्र धौदेवतायाः रत्नमय गृहमस्ति तस्य दंपत्रिकं वैद्मभ्यासोबयाः यथासंख्य कोचप्रमाणे तस्या सयोरभययोर्योया च स्यात् ॥ ५७१ ॥
___ गाया:-कमल का अधं उत्सेध जल के बाहर निकला हुआ है। कमल की कणिका की ऊंचाई और चौड़ाई कमल के उदय और व्यास का चतुर्थाश है । उस करिणका पर श्री देवी का रस्नमय गृह है, उसको दीर्घता, व्यास और उदय ये तीनों क्रमशः एक कोश, अर्घ कोश और दोनों के योग का अर्धभाग अर्थाद { १+ :२)-पोन कोश प्रमाण है ।। ५७१ ॥
विशेषार्ष:-कमल के उत्सेध का अर्थ प्रमाण अर्थात् ३ योजन नाल जल से ऊपर निकली हुई है। कणिका का उदय और व्यास कमल के अदय और व्यास का चतुर्थाश है । अर्थात कमल का उदय और व्यास एक एक योजन प्रमाण है, अतः कणिका का उदय और व्यास (१४)=1-एक एक कोश प्रमाण है। इसी कणिका पर श्री देवी का रत्नमय गृह है, जिसको लम्बाई एक कोश, चौड़ाई। कोश और ऊंचाई ३ ( पौन कोश प्रमाण है।
नोट :-गाथा ५६९ को उत्थानिका में दो गाथाओं द्वारा कमलों के विशेषादि के कहने की प्रतिज्ञा की गई है. अतः गाथा ५६९ और ५७१ ये दो गाथाएं एक साथ दी गई हैं । यद्यपि पूर्व प्रकाशित पुस्तकों में दूसरी गाथा अर्थात् गाथा नं. ५७१, प्रक्षेप गाथा ५७० के बाद दी गई है। किन्तु प्रक्षेप गाथा, ५७० का सम्बन्ध गाथा ५६९ से न होकर ५७१ से है, इसीलिए प्रक्षेप गाथा ५७० गाथा ५७१ के बाद दी जा रही है। अथ एतदनुगुणं प्रक्षेपगाथामाह
दहममे अरविंदयणालं बादालकोसमुवि । इगिकोसं माहन्लं तस्स मुणाल ति रजदमयं ।। ५७० ।। ह्रदमध्ये अरविन्दकनालं द्वाचत्वारिंशकोशोत्सेधम् ।
एकको बाहल्यं तस्य मृणालं त्रि: रजतमयम् || ५७० ॥ वह। हवमध्पेशविनय मालं वाचवारिशरकोशोरसेषं एककोशवाहरूयं तस्य मृणाल विक्रोशवाहल्यं रजतमयं स्यात् ॥ ५७० ॥