SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 524
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिलोकसाब पापा : ५६४ विशेषार्थ :- जम्बूद्वीप में एक मेह गिरि है। तथा वातको खण्ड और पुष्कराक्षं द्वीपों में इष्कार पर्वतों के द्वारा पूर्व पश्चिम दिशाओं में किए हुए दो दो धनुषाकार क्षेत्र हैं । अर्थात् धातकी खण्ड में दो हवकार पर्वतों ने धनुषाकार दो क्षेत्र बनाये हैं, और पुष्कराधं द्वीप में भी दो इष्वाका पत्रों ने धनुषाकार दो क्षेत्र बनाए हैं। इन्हीं चार क्षेत्रों में चार सुमेवगिरि स्थित हैं। उन क्षेत्रों में भी वे मन्दर गिरि कहाँ अवस्थित हैं १ इष्वाकार पर्वतों के द्वारा बनाए हुए जो भरतेरावतादि क्षेत्र हैं, उनके ठीक मध्य भाग में विदेह क्षेत्रों की अवस्थिति है विदेह क्षेत्रों के अत्यन्त मध्य में ये चारों सुमेरु पर्वत स्थित हैं। इनका चित्रण निम्न प्रकार से है: ४८० Nag ܗܟܠܫܐܬ ܝܬ ܐܬ gho でき K RISHNA sii ह दिस जानन hara SEE Fo १ द SUBSCR उद्‌घाटक "हे trol that 2 ३) + fork. अथ तेषां मन्दराणामुभयपार्श्वस्थित क्षेत्राणां नामानि कथयतिदक्खि दिसासु मरहो हेमवदो हरिविदेदरम्मो य । हहरण्णव देरावदवस्सा कुलपव्वयंवरिया || ५६४ ।। दक्षिण दिशासु भरतो हैमवतः हरिविदेहरम्यश्च । हैरण्यवदशवतवर्षाः कुलपर्वतान्तरिता ।। ५६४ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy