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________________ गापा :५६५ भरतियंग्लोकाधिकार Yat वक्षिण । तेषां मन्दराणा दक्षिणविशाया प्रारभ्य मरतः हमवता हरिः पिवहा रम्यक हरण्यवता ऐरावत इत्येते वर्षा हिमववाबिकुलपर्वतान्तरिताः ॥ ५६४ ॥ उन सुमेरु पर्वतों के दोनों पाश्र्व भागों में स्थित क्षेत्रोंके नाम कहते हैं : गाया:-उन मन्दर मेरूमों की दक्षिण दिशा से लगाकर क्रमशः (१) भरत ( २ ) हेमवत (३) हरि ( ४ ) विदेह ( ५) रम्यक ( ६ ) हैरण्यवत और (७) ऐरावत ये सात क्षेत्र है, जो कुल पर्वतों से अन्तरित हैं । अर्थात् जिनके बीच में कुल पर्वतों के होने से अन्तर प्राप्त है ॥ ५६४ ॥ विशेषार्प :-उन सुमेरु पर्वतों की दक्षिण दिशा से प्रारम्भ कर मशः मरमादि सात क्षेत्र हैं। जिनमें बीच बीच में कुल पर्वतों के कारण अन्तर है । अर्थात् इन क्षेत्रों के अन्तराल में कुछ पर्वत हैं। यथा :- भरत और हैमवत के बीच में हिमवान् पर्वत है । हैमवत और हरि के बीचमें महाहिमवान्, हरि और विदेह के बीच निषध, विदेह और रम्पक के बीच में नोल, रम्पक और हैरण्यवत के बीच में रुक्मी, तथा हैरण्यवत और ऐरावत के बीच में शिखरिन् पर्वत हैं। अथ तेषां पर्वतानां नामादिकं गाथाद्वयेनाह--- हिमवं महादिहिमवं णिसहो गीलो य रुम्मि सिहरी य । मूलोपरि समवासा मणिपासा जलणिहिं पुट्ठा ॥ ५६ ।। हिमवान महादिहिमपान निषधः नीलश्च रुकमी शिखरी च। मूलोपरि समन्यासा मणिपा/ जलनिधि प्रष्टाः ॥ ५६५ ।। हिमवं । हिमवान् महाहिमवान् निवको नीला हामी शिखरी ब, एते स मूलोपरि समानण्यासा: मणिमयपर्वा मलनिधि स्पृष्टाः ॥ ५६५ ॥ दो गाथाओं द्वारा उन कुलाबों के नामादि कहते हैं: गायार्थ :-हिमवान्, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरिद ये छह कुल पर्वत मूल में व ऊपर समान व्यास-विस्तार मे युक्त हैं । मरिणयों से खचित इनके दोनों पाश्वभाग समुद्रों का स्पर्श करने वाले हैं ॥ ५६५ ॥ विशेषार्ष:-(१) हिमवान् (२) महाहिमवान् (३) निषष ( ४ ) नील (५) रुक्मी और (६) शिरिन् ये छह कुलाचल पर्वत हैं। दीवाल सदृश इन फुलाचलों का व्यास-चौड़ाई नोचे से ऊपर तक समान है । इन कुलाचलों के दोनों पाश्वभाग मणिमय हैं और समुद्रों को स्पर्श करने वाले हैं। जम्बूद्वीप में कुलाचलों के दोनों पाश्व भाग लवणसमुद्र को स्पर्श करते हैं। घातको खण्ड में लवणोदधि और कालोदधि को स्पर्श करते हैं किन्तु पुष्कराचंद्वीप में कालोदधि और मानुषोत्तर पर्वत को सशंगारते हैं।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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