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________________ पाषा । ५५२-५६३ नरतियंग्लोकाधिकार अथ नरलोक जिनगृहाणि कुत्र कुत्र तिन्ति इत्युक्त आहे मंदरकुलवक्खारिसुमणुसुचररुप्पजंबुसामलिए । सीदी तीसं तु सयं चउ चउ सचरिसय दुषणं ॥ ५६२ ॥ मन्दरकुलव क्षारेषु मानुषोत्तररूपयजम्बूशाल्मलिपु । अशीतिः त्रिंशत् तु शतं चत्वारि चत्वारि सातिशतं द्विपञ्च ॥ १३२ ।। मंवर । मन्चरेषु ५ कुलपर्वतेषु ३० पक्षारेषु १०० इष्वाकारेषु ४ मानुषोचरे १ विजयार्थेषु १७. सम्बवृक्षेषु ५ शाल्मलीवृक्षेषु ५ यथासंण्य नगहाण्यशीति विनात ३. शतं १८० चत्वारि ४ पारि ४ सप्तत्युत्तरशतं १७० द्विवारपञ्च ५-५ भवन्ति ॥ ५६२ ॥ नरलोकके चैत्यालय कहाँ कहाँ स्थित हैं ? उन्हें कहते हैं : गाया:-सुमेरु, कुलाचल, वक्षारगिरि, इष्वाकार, मानुषोत्तर, रूप्यगिरि (विजया) जम्बूवृक्ष और शाल्मलि वृक्षों पर कम से अस्सी, तीस, सौ, चार, चार. एफ सी सत्तर, पाच और पांच जिनमन्दिर हैं ।। ५६२ ॥ ___ विशेषाय :-पाच सुमेरू पर्वतों पर ८० जिनमन्दिर हैं, तीस कुलाचलों पर ३०, अदन्त सहित सो वक्षायगिरि पर १००, चार इष्याकार पर ४, मानुषोत्तर पर ४ एक सौ सत्तर विजयाघों पर १००, • पाच जम्बूवृक्षों पर ५, और पांच शाल्मलि वृक्षों पर ५ जिनमन्दिर स्थित हैं। इस प्रकार नरलोक में कुल ( .+३०+१०+४+४+१+५+५= ) ३६८ जिनमन्दिच हैं। अथ मने पक्ष्यमाणानामर्थानां मन्दराश्रयत्वात्तानेव प्रथम प्रतिपादयति जंबूदीवे एकको इसुकयपुबवरचावदीवदुगे। दो हो मन्दरसेला बहुमज्झगविजयबहुमज्मे ।। ५६३ ।। जम्बूद्वीपे एकः इपुकूतपूपिरचापद्वीपद्धिके । द्वी टी मन्दरीलो बहुमध्यगविजयबहुमध्ये ।। ५६३ ।। जंबू । जम्बूवीपे एको मन्दरः व्याफारपर्वतकृतपूर्वापरयापद्वीपट्टिके तो वो मन्दरीलो । तत्रापि ते मन्दराः पय तिष्ठन्ति ? भरताविवेशानामतिशयम मध्यस्पितो विनयः देश इत्यर्थः। तस्यास्यन्तमध्यप्रवेो सिन्ति ५६३ ॥ अब आगे कहा जाने वाला सर्व अर्थ मेरु के आश्रय है, अतः सर्वप्रथम मेवगिरि का प्रतिपादन करते हैं: ___ गाथार्थ :--जम्बूद्वीप में एक मेगिरि है। दो द्वीपों में इष्वाकार पर्वतों के द्वारा किए हुए पूर्व पश्चिम में दो दो धनुषाकार क्षेत्रों में दो दो मेरुपर्वत हैं, इन मेरू पर्वतों का अवस्थान उन धनुषाकार क्षेत्रों के ठोक मध्य में स्थित विदेहों के ठीक मध्य में है ॥ ५६३ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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