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मिलोकसाब
पाथा ५७-५४०
चरकाश्च परिनाजा ब्रह्मोत्तरपदान्त भाजीवाः ।
अनुदिशानुत्तरतः च्युता न केशवपद यान्ति ।। ५४७ ।। परया य। नग्नाण्ड' लमरणाघरका एकनिविदाण्डलक्षणाः परिवामका बहाकापपर्यन्तं যনি দিদিম ন নন মুখ। কলিজাৰিশীদিন: আজী অনুনয়ন ধারি না उपरि । साम्प्रतं देवातेवपुतानामुत्पत्तिस्वरूपमाह-मनुविशामुत्तरविमानेम्याथ्युताः केशवपदं वासुदेवप्रतिवासुदेव पवं न यान्ति ॥ ५४७ ॥
गापार्ष:-चरक और परिबाजक सन्यासी ब्रह्मकल्प पर्यन्त और आजीवक साधु अच्युतकरूप पर्यन्त उत्पन्न होते हैं । अनुदिश और अनुत्तर विमानों से चय होकर मनुष्य गति में आने वाले जीव नारायण और पतिनारायण पद को प्राप्त नहीं होते ।। ५४७ ।।
विशेषार्थ :- नग्नाण्ड है लक्षण जिनका ऐसे चरक एवं एक दण्डि, त्रिदपष्ट है लक्षण जिनका ऐसे परिव्राजक सन्यासी ब्रह्म कल्प पर्यन्त उत्पन्न होते हैं, इससे ऊपर नहीं। कांजी आदि का भोजन करने वाले नग्न आजीवक अच्युत कल्प पर्यन्त सत्पन्न होते हैं, इसमे ऊपर नहीं।
अब देवगति से युक्त होने वाले जीवों की उत्पत्ति का स्वरूप कहते हैं :
जो जीव अनुदिश और अनुत्तर विमानों से व्युत होकर आते हैं, वे नारायण और प्रतिनारायण पद को प्राप्त नहीं होते । क्योंकि वे सम्यक्त्व से च्युत नहीं होते हैं। किन्तु नारायण मौर प्रतिनारायण सम्यक्त्व से च्युत होकर नियम से नरक जाते हैं। अपातश्च्यात्वा निर्वाणं गच्छता नामान्याह
सोहम्मो घरदेवी सलोगवाला य दक्षिणमरिंदा । लोयंतिय सम्बट्टा तदो चुदा णिवुदि जाति ।। ५४८ ।। सौधों वरदेवी सलोकपालाश्च दक्षिणामरेन्द्राः।
लोकान्तिकाः सर्वाः ततश्च्युता निवनि यान्ति ।। ५४६ ।। मोहम्मो । सौधम्रतस्य पट्टदेवी शायो तस्य सोमानिलोकपाला बक्षिणामरेन्द्राः सवे, लोकान्तिकाः सर्वे, सर्वार्थ सिविनाः सर्वे, ततो देवगतेवध्यता नियमेन निति यान्ति ॥ ५४८ ॥
जो जीव देवगति से चय कर निर्धारण ही जाते हैं, उनके नाम कहते हैं
पायार्थ:-सौधर्मेन्द्र, उसी की प्रधान ( पट्ट) देवालना ( शची ), उसी के लोकपाल दक्षिणेन्द्र लोकान्तिक देव ओय सर्वार्थ सिद्धि सं चय होने वाले देव नियम से निर्माण प्राप्त करते हैं ॥ ५४८ ।।
'मग्नाट ( .,.