________________
४६६
त्रिलोकसार
गाथा : ५४३
सौधर्म कल्प में तो पांच पत्य की है, इसके आगे कम से ग्यारह स्थानों में दो दो की और शेष चार स्थानों में सात सात पल्य की वृद्धि पूर्वक है ।। ५४२ ॥
विशेष :– सोधर्मादि वो कल्पों में देवांगनाओं की जघन्याय कुछ अधिक एक पल्य है । इसके आगे द्वितीयादि स्वर्गों की उत्कृष्टायु तृतीयादि स्वर्गो की जघन्यायु होती है । सोधर्म कल्प में देवांगनाओं की उत्कृष्टायु पाँच पल्य है। इससे ऐशानादि ग्यारह स्थानों में दो दो की वृद्धि को लिए हुए तथा अनितादि चार स्थानों में सात सात पश्य की वृद्धि को लिए हुए है। यथा
कल्प-सी
ऐशान
जघन्यायु एक पल्य . कुछ अधिक | कुछ अधि १
उत्कुष्टायु – ५
७
I
:
सा०मा० ब्रह्म ब्रह्मो लां० का० शु०म० श० स० आ० प्रा० मा ब
७
९ ११ १३ १५:१७ १९ २१ २३ २५ २७ ३४ ४१ ४८
६ ११ १३ १५ १७ १६ २१ २३ २५ २७ ३४ ४१ ४८५५
i
इदानों देवानां शरीरोत्सेधमाह-
दुस सुदुदु चउ तिचितु सेसेसु देहउम्सेहो । रयणीण सत्त छपणचचारि दलेण हीणकमा ॥ ५४३ ||
योद्वयोः चतुषु द्वयोदयोः चतुर्षु ं त्रिस्त्रिषु शेषेषु देहोत्सेधः । reatti सप्त षट् पचत्वारः दलेन हीनक्रमः || ५४३ ||
सुसु । द्वयोर्द्वयोश्चतुर्षु उयोट मोदचतुर्षु त्रस्त्रिषु शेषेध्विति वशसु स्यामेषु बेहोसबो यथासंख्ये सप्त ७ षट् ६ पच ५ घरवारो ४ स्मयः तव उपरि प्रहस्तही सहभो
ज्ञातव्यः ॥ ५४३ n
I देवों के शरीर का उत्सेध कहते हैं :
गार्थ :- सौधर्मादि दो, दो, चार, दो, दो, चार, तीन और शेष अनुदिश आदि स्वर्गो में देवों के शरीर का उत्सेध कम से सात, छह पाँच, चार हाथ और उसके ऊपर अवं अघं हाथ होन प्रमाण को लिए हुए है ।। ५४३ ।।
विशेषार्थ :- देवों के शरीर की ऊँचाई सोधमशान में ७ हस्त प्रमाण- सानत्कुमारादि दो में ६ हस्त, ब्रह्मादि चार में ५ हस्त, शुक्रादि दो में ४ हस्त, शतार आदि दो में ३३ हस्त, आनतादि चार में ३ हस्त, अघोग्रंवेयक में २३ हस्त, मध्य वेयक में २ हस्त उपरि स्वेयक में १३ हस्त और अनुदिश एवं अनुत्तर विमानों में एक हस्त प्रमाया है ।
अथ तेषामुच्छ्रवासाहार कालो निरूपयति-