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________________ पापा । ५३२-५३ वैमानिकलोकाधिकार ४५७ सौधर्म वरं पल्यं अवरं उदधिद्धिकं सप्त दया च चतुर्दशकं । द्वाविंशतिरिति द्विवृद्धिः एकैकं यावत्वयस्त्रिंशत् ॥ ५३२ ।। सोहम्म | सौधर्मयुगले मधस्यमापुः पल्य मुत्कृष्टं तु प्रत्येक सागरोषमयं । इस उपरि सर्वोत्कृष्टमेव कथयति-सनरकमारयुगले प्रत्येक सप्त सागरोपमाणि महायुपले प्रत्येकं वशतागरोपमारिए लान्तवयुगले प्रत्येक चतुवंशसागरोपमाणि इस उपरि युगलयुगलं प्रति प्रत्येक द्वाविशतिसागरोपम'पर्यन्तं द्विसागशेषमद्धितिया। इत अध्युतादुपरि मावस्त्रविशत्सागरोपमं तावदेकबुद्धि मतिण्या ॥ १३२॥ श्यमादि युगलों में स्थिति विशेष कहते हैं : गाथा:-सौधम युगल की जघन्यायु एक पल्प और उत्कृष्टायु दो सागर की है। इसके आगे क्रम से मात सागर, दश सागर, चौदह मागर प्रमाण है । चौदह सागर से बावीस सागर पर्यन्त दो दो सागर की वृद्धि को लिये हुए तथा उसके ऊपर तेतीस सागर पर्यन्त एक एक सागर की वृद्धि को लिए हुए उत्कृष्ट आयु का प्रमाण है ॥ ५३२ ॥ ___ विशेषा:-सौधर्म युगल में जघन्यायु एक पल्य और उत्कृष्टायु प्रत्येक को दो सागर है। इससे ऊपर सर्वोत्कृष्ट मायु ही कहते हैं- सानत्कुमार युगल में प्रत्येक की सात सागरोपम, ब्रह्म युगल में प्रत्येक को दश सागरोपम, लान्तव मुगल में प्रत्येक की चौदह सागरोपम प्रमाण है। इससे ऊपर बावीस सागरोपम पर्यन्त दो दो सागर की वृद्धि है। यथा-शुक्र युगल में सोलह सागरोपम, पाताच युगल में अठारह सापरोपम, आना युगल में बीस और आरण युगल में बावीस सागरोपम प्रमाण है। इससे ऊपर तेतीस सागरोपम पर्यन्त एक एक सागर की वृद्धि को लेकर है । यथा-प्रथमादि नव प्रवेयकों में कम से २३, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ सागरोपम प्रमाण है। नद अनुदिशों में ३२ सागरोपम और पांच अनुत्तरों में उत्कृष्टायु तेतीस सागरोपम प्रमाण है। अप घावायुष्कसम्यग्दृष्टेः पटल प्रति चोवृष्टायुष्य माह सम्मे घादेऊणं सायरदलमहियमा सहस्सारा । जल हिदलमुडवराऊ पडलं पडि जाण हाणिचयं ।।५३३।। समीचि घातायुपि सागरदलमधिकमा सहस्रारात् । जलधिदलं ऋतुबरायुः पटल प्रति जानीहि हानिचयम् ॥३३॥ सम्मे धा । सम्याही घातायुधि सति तस्य स्वकोपकल्पोत्कृष्टायुषा सकाशावतमहोंने सापरवलमधिकं भवति । सा । एवं सहस्रारपतं सातव्यं । तत उपरि घातायुकस्योरपत्तिास्ति । सौषमयुगलस्य प्रथमपटले स्विमके पर्षसागरोपमं सस्कृष्टायुः इति प्रपमधरमपरलयोरायु या पटलं प्रति हानिधयं जानोहि । तरूपं । घातयुके तावत् सोमर्मानुयुगले प्रा १८
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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