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________________ पाया : ५२८ वैमानिक लोकाधिकार ४५३ स्थापित कर इस अवधिज्ञानावरण के द्रश्य को सिद्ध राशि के अनन्त भाग प्रमाण बहार का एक चार भाग देना और क्षेत्र के प्रदेश पुञ्ज में से एक प्रदेश कम कर ( घटा ) देना। भाग देने पर प्राप्त हुई लन्ध राशि में दूसरी बार उसी बहार का भाग देना और प्रदेश पुञ्ज में से एक प्रदेश पुनः घटा देना । पुनः लघ राशि में ध्रु बहार का भाग देना और प्रद ेश पुञ्ज में मे एक प्रदेश और घटा देना। इस प्रकार अवधिज्ञान के विषय भूत क्षेत्र के जितने प्रदेश हैं उतनी बार अवधिज्ञानावरण कर्म के परमाणु पुञ्ज के भजन फल रूप लब्ध राशि में भाग देने के बाद अन्त में जो लब्ध राशि प्राप्त हो उसने परमाणु पुञ्ज स्वरूप पुद्गल स्कन्ध को वैमानिक देव अपने अवधि नेत्र से जानते हैं । इस प्रकार अवधिज्ञान के विषयभूत द्रव्य के भेद सूचित किए गए हैं। अब इसी विषय का विशद रूप से कथन किया जाता है। वैमानिक ( कल्पवासी ) देवों के अपने अपने अत्र विज्ञान का जितना जितना क्षेत्र है, और उस क्षेत्र की जितनी जितनी प्रदेश संख्या है उनको एक और स्थापित करना और विस्रसोपचय रहित अपना अपना अवधिज्ञानावरण कर्म का द्रव्य ( परमाणु समूह ) दूसरी ओर स्थापित करना चाहिए । सौधर्म स्वर्ग में अत्र विज्ञान का क्षेत्र डेराज है, जिसका प्रतीक चित्र ३४३ घन राजू प्रमाणा धन लोक का प्रतीक '' है क्योंकि जगत् श्रेणी का प्रतीक ( ) है, और लोक जगत् श्रेणी का धन है, अतः लोक का प्रतीक ( ) है। लोक को २४३ से भाजित करने पर (57)= १ धन राजू और इसी कोई से गुणित करने पर ( ३ ) - १३ घन राजू प्राप्त होता है, जो सोधर्म द वों का अवधि क्षेत्र है । x उषष सातौं कर्मों के समय प्रबद्ध का प्रतीक चिह्न ( स ७ ) है । इम द्रव्य ( समय प्रवद्ध ) को ७ मे भाजित करने पर अवधिज्ञानावरण का द्रव्य ( स ) प्राप्त हो जाता है। इसमें सर्वघाती स्पर्धक अल्प हैं, मन उनको गौरा कर ( ७ ) को देशघातिया स्पर्धकों का द्रव्य स्वीकृत कर लिया जाता है। मति त अवधि और मन:पर्यय इन चार ज्ञानावरण कर्मों में दंश घाती स्पर्धक होते हैं। छतः ( स ) को ४ का भाग देने पर ( सुछु । एक समय प्रवद्ध में अवधिज्ञानावरण कर्म का द्रव्य प्राप्त ७ 3 X ८ हो जाता है। अवधिज्ञानावरण के एक समय प्रबद्ध को डेढ़गुण हानि (१२ क्योंकि एक गुणहानि का प्रतीक चिह्न है तथा ८३ - १२ होते हैं ) से गुणित करने पर अवधिज्ञानावरण का सत्त्व ( स ७१२ ) प्राप्त होता है। धवभागहा का प्रतीक चिह्न ( ९ ) है, अतः अवधिज्ञानावर के ७२ ) प्राप्त होता -- सत्व द्रव्य ( स ७ x १२ ) को एक बार धत्र भागहार का भाग देने पर ( xx 2 ( = x 3 ) प्राप्त होता है। 377X1 EYE है । अवधिज्ञान के क्षेत्र प्रदेशों ३) में से एक कम करने पर यहाँ पर घटाने का चिह्न ( ) ऐसा है । - इस प्रकार अवधिज्ञानावरण कर्म के सत्व द्रव्य में प्रत्येक बार ध्रुव भागहार का भाग देने पर अव विज्ञान क्षेत्र में से एक एक प्रदेपा कम करने पर जब अवधिज्ञान क्षेत्र के प्रदेश समाप्त हो जाए
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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