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गाथा : ५२७
वैमानिनोकाधिकार हो जाते हैं। इसके आगे नव वेयकों से सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त के सभी दंब अहमिन्द्र हैं। इन अहमिन्द्रों में काम पीड़ा उत्पन्न ही नहीं होती अतः ये प्रवीचार से रहित हैं। अनन्तरं वैमानिकदेवानां विक्रियाशक्तिज्ञानविषयं च गाथाद्वयेनाह
दुसु दुसु तिचउक्के सु य णवचोदसगे विगुवणासची । पढमखिदीदो सत्चखिदिपैरंतो चि अबही य ।। ५२७ ।। हयोदयोः त्रिचतुष्केषु च नत्र चतुदंशसु विकुणाशक्तिः।
प्रथमक्षितितः सप्तमक्षितिपर्यन्तं इति अवधिश्च ॥ ५२७ ।। चुमु तु । यो २ यो २ विकेषु च १२ प्रवेपकेषु मबसु प्रतुविशादिषु चतुर्वशषिमामेषु सप्तस्थानेषु विकुवंरणाशक्तियंपासंख्यं प्रथमपृथिवीतः मारम्य सप्तमक्षितिपर्यन्तं मातम्या । प्रषिमानं व तथा सातव्यम् । उपरि तद्ज्ञान' समितिवेत् ? सौधर्माविवेवाः स्वकीयस्वकीयकल्पविमानध्यमबहादुपार न पश्यन्ति । नवानुत्तरविमानवासिंदेवा पात्मीयात्मीयविमानशिलरावधो पावसाह्म पासवलयं तापरिकश्चिन्यूमचतुर्वशरमकायतामेकरजुबिस्तारा सर्वलोकनालि पश्यन्ति ।। ५२७ ॥
वैमानिक देवों की विकिया शक्ति और ज्ञान का विषय दो गाषाओं द्वारा कहते
गाथार्य :-सोधर्मादि दो, दो, तीन चतुष्क अर्थात् चार, चार और चार, नव और पौवह (नव अनुदिश, ५ अनुत्तर ) स्वों के देवों को विक्रिया करने की एवं अवधिज्ञान से जानने की शक्ति कम से नरक की प्रथम पृथ्वी से सातवीं पृथ्वी पर्यन्त है ॥ ५२७ ॥
विशेषार्थ :-दो, दो, तीन चतुष्क अर्थात् ११, नववेयक और नव अनुदिशादि १४ विमानों में रहने वाले देव नीचे सात स्थानों में अर्थात् प्रथम पृथ्वी से सप्तम पृथ्वी पर्यन्त यथासंख्य विक्रिया शक्ति से सहित हैं। अवधिज्ञान का क्षेत्र भी इतना ही जानना चाहिये । अवधिज्ञान का क्षेत्र ऊपर कितना है । ऐसा पूछने पर कहते हैं कि प्रत्येक कल्प के देव अपने अपने विमान के बजादण्ड से ऊपर के क्षेत्र की बात नहीं जान सकते । यथा-प्रथम दो कल्पों के देव धर्मा पृथ्वी तक, आगे के दो कल्पो के दूसरी वंशा पृथ्वी तक, आगे ब्रह्मादि चार स्वर्गों के तीसरो मेघा पृथ्वी तक, आगे शुकादि पार स्वगों कं चौथी अजना पृथ्वी तक, आगे आनतादि चार स्वर्गों के देव पांचवी अरिष्टता पृथ्वी तक, आगे नव वेयक स्वर्गों के देव छठवीं मघवी पृथ्वी तक और आगे नव अनुदिश एवं पांच अनुत्तर अर्थात् चौदह विमानों के देव सातवी माधवी पृथ्वी प्रयन्त विक्रिया करने की शक्ति से संयुक्त है।
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उपरि शान (प.)।