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त्रिलोकसार
गाथा : ५२६
गाथार्थ :- दक्षिण उत्तर कल्पों की देवांगनाएं क्रम से सोघमैंशान में ही उत्पन्न होती है । वह शुद्ध ( मात्र ) देवांगनाओं की उत्पत्ति से युक्त छह लाख और चार लाख विमान है। उन देवियों को उत्पत्ति के पश्चात् उपरम कल्पों के देव अपने अपने स्थान पर ले जाते हैं । सोधर्मेशान कल्पों में शेष छबीस लाख और चौबीस लाख विमान देव देवियों की उत्पति से संमिश्र हैं ।। ५२४, ५२५ ।।
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विशेषार्थ :- आरण स्वर्ग पर्यन्त दक्षिण कल्पों की समस्त देवांगनाएं सौधर्म कल्प में और अच्युत स्वर्ग पर्यन्त उत्तर कल्पों की समस्त देवांगनाएं ऐशान कल्प में ही उत्पन्न होती हैं । उत्पत्ति के बाद उपरम कल्पों के देव अपनी अपनी नियोगिनी देवांगनाओं को अपने अपने स्थानों पर ले जाते हैं । सौधमं कल्प में ६००००० ( छह लाख ) विमाम और ईशान कल्प में ४००००० विमान शुद्ध हैं । अर्थात् इनमें मात्र देवाङ्गनाओं की ही (२६ लाख ) और २४००००० (२४ लाख ) विमान देव देवियों से संमित्र हैं। अर्थात् उनमें देव और देवांगना- दोनों की उत्पत्ति होती है।
देती है,
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इदानीं कल्पवासिनां प्रवीचारं विचारयति
सुसु चिक्के य काये फासे य रूप सदे य । विधि य पहिचारा अप्पडिचारा हु मइर्मिंदा ।। ५२६ ।।
द्वययोः त्रिचतुष्केषु च काये स्पर्शे च रूपे शब्दे च ।
चित्तेऽपि च प्रवीचारा अप्रवीचारा हि महमिन्द्राः ।। ५६६ ।।
सुसु । सौधर्मादियो २ यी २ खिचतुष्केषु छ १२ देवदेवीनां यथासंख्यं काये स्परूपे शक्ये विशेऽपि च प्रवीचाराः । तत उपरि अहमिन्द्रा धनवीचारा एव । ५२६ ॥
अब कल्पवासी देवों के प्रवीचार का विचार करते हैं
गाथा : सौधर्मादिदो दो और तीन चतुष्क अर्थात् चार चार और चार स्वर्गों में कम से काय, स्पर्श, रूप, शब्द और चित्त में प्रविचार है । अहमिन्द्र अप्रवीचारी होते हैं ।। ५२६ ।।
विशेषार्थं :- काम सेवन को प्रवीचार कहते हैं । सोर्मेशान कल्पों के देव अपनो देवांगनाओं के साथ मनुष्यों के सदृश काम सेवन करके अपनी इच्छा शान्त करते हैं । सानत्कुमार माहेन्द्र कल्पों के देव देवांगनाओं के स्पर्श मात्र से अपनी पोड़ा शान्त करते हैं। ब्रह्म ब्रह्मोत्तर और लान्तव कापिष्ठ कल्पों के देव देवांगनाओं के रूपावलोकन मात्र से अपनी पीड़ा शान्त करते हैं। शुक्र- महाशुक और शतार सहस्रार कल्पों के देव देवांगनाओं के गीतादि शब्दों को सुनकर ही काम पीड़ा से रहित होते हैं। तथा मानतादि चाय कल्पों के देव मन में देवांगना का विचार करते ही काम वेदना से रहित