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त्रिलोकसार
पापा:१४-५१५
तासां वल्लभिकानां प्रासादोत्सेधं तत्प्रामादावस्थानदिशं चाह
देवीपासादुदया वन्लमियाणं तु चीसहियं खु।। इंदत्थंभगिहादो पल्लभियावासया पुच्चे ॥ ४१४ ॥ क्षेत्रोप्रासादोदयात वल्लभिकाना तु विशाधिकः खलु ।
इन्द्रस्तम्भगृहात् बल्लभिकावासका पूर्वस्याम ।। ५१४ ।। देवोपासा। बीना प्रासादोक्यावननिकाना प्रासारोपयस्तु विशतियोगनाषिक: खस । - प्रासावापूर्वस्यां विशि पल्लमिलाप्रासावालिन्ति ॥ ५१४ ॥
इन बलभादेवियों के प्रासादों का उत्सेध एवं प्रासादो के अयस्थान की विशा दर्शाते है
पाथार्थ :-देवियों के प्रासादों की ऊंचाई से वल्लभादेवायनामों के प्रासादों की ऊंचाई बोस योजन अधिक है। इन्द्र के प्रासाद से पूर्व दिशा में बल्लमानों के प्रामादों की स्थिति
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विशेषार्थ:-देषियों के प्रासादों की ऊंचाई से वल्लभादेवांगनाओं के प्रासादों की ऊँचाई कीस योजन अधिक है । अर्थात् क्रम से ५२०, ४७०, ४२०, ३७०, ३२०, २७० प्रौर २२० योजन प्रमाण है। इनके प्रासादों का अवस्थान इन्द्र के प्रासाल की पूर्व दिशा में है। इन्द्रस्यास्मानमण्डपस्वरूपमाह--
भमरावदिपुरमज्मे थंभगिहीसाणदो सुधम्मक्खं । माणमण्डवं सयतद्दलदीहदु तदुमयदल उदयं ।। ५१५ ।। अमरावतीपुरमध्ये स्तम्भगृहशानतः सुधर्माख्यम् ।
बास्थानमण्डपं शततद्दल दीदिः तदुभयदल: उदयः ।।१५|| भमराव । अमरावतीपुरमधो निस्यावासगृहस्येशामत: सुबममापानमपं.मस्ति । तस्य देध्यंच्यासो शतयोमानतद्दलो तयोमिलितोभययोर्बल उत्सेष: स्पाय ॥ ५१५ ॥
मन के पास्थानमण्डप का स्वरूप कहते हैं
गापार्य:-अमरावती नगर के मध्य में इन्द्र के निवास स्थान से ईशान दिशा में सुधर्मा नामक भास्थान मण्डप ( सभास्थान ) है । उसकी लम्बाई सौ योजन, चौड़ाई लम्बाई के अर्धभाग और ऊंचाई लम्बाई+ चौहाई दोनों के योग के अधंभाग प्रमाण है ॥ १५ ॥
विशेषा:-इन्द्र अमरावती नामक नगर में रहता है। अमरावती के ठोक मध्य में उसके निवास करने का प्रासार है। प्रासाद की ईशान दिशा में सुधमा नामक धास्थान मण्डप है; जिसकी
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