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त्रिलोकसार
पाषा:५१२
पापा:-सर्व दक्षिणेन्द्रों के १ शची, २ पद्मा, ३ शिवा, ४ श्यामा, ५ कालिन्दी, ६ सुलसा, ७ अज्जुका और भानु नाम को ज्येष्ठ ( अग्न ) देवांगनाएं हैं ॥५१॥
पापा:-सर्व उत्तरेन्द्रों के १ श्रीमती, २ रामा, ३ सुमीमा, ४ प्रभावती, ५ जयसेना, ६ व मुमिन और नाममा नाम की मापट्ट देवांगनाए है ।। ५११ ॥
विशेषार्थ:-सर्व दक्षिणेन्द्रों और सर्व उत्तरेन्द्रों की माठ आठ पट्ट देवांगनाओं के नाम उपयुक्त
अथ तत्राग्र महादेवीनां विक्रियाप्रमाणं निरूपयति
मनुवं देवीणं पुधपुध सोलस सहस्सविकिरिया । मूलसरीरेण समं सेसे दुगुणा मुणेदना ॥ ५१२ ।। अष्टानां देवीनां पृथक पृथक पोडशसहस्रबिक्रियाः।
मूलशरोरेण समं शेषे द्विगुणा मन्तव्याः ॥ ५१२ ।। पहल। सप्त स्थानेषु भादरापान देखोमा पृथक पृथक मूलशरीरेण समं योगशसहस्रविक्रिया वेश्यः । शेष गुणद्विगुणा देण्यो सातम्याः ॥ ५१२ ।। . वन अग्रदेवांगनाओं को विक्रिया के प्रमाण का निरूपण करते हैं
पापा:-प्रथम स्थान में पृथक पृथक पाटो अग्रदेवियों के अपने मूल शरीर सहित सोलह सोलह हजार विक्रियाशरीर होते हैं, शेष स्थानों में दूना दूना प्रमाण जानना चाहिए ।। ५१२ ॥
विशेषार्ग :-सासों स्थानों में से प्रथम स्थान में भिन्न भिन्न पाठों महादेवांगनाओं के मूल पारोर सहित सोलह सोलह हजार विक्रिया शरीर होते हैं । शेष द्वितीयादि स्थानों में यह प्रमाण अर्थात् वकिपिक देवियों का प्रमाण दूना दूना मानना चाहिए।
अग्र देवांगनाखों, परिवार देवांगनाओं एवं बैंक्रिषिक देवांगनाओं का प्रमाण
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१ पोपे तु द्विगुणा देव्यः ज्ञातव्या (ब., प)।