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पाषा:५०९ मे५११
वैमानिकलोकाधिकार
कल्पेश्वग्रदेवीनां परिवारदेवीनां च प्रमाण माह
मत्तपद भट्टद्वमहादेवीयो पुधादि मेक्किम्से | ससमं सोलसहस्सा देवीओ उपरि अद्धा ।। ५.९ ।। सप्तपोषु अष्टाहमहादेव्यः पृथक् आदिमे एकस्य ।
स्व समं षोडपासहस्रा देव्यः उपरि अर्धार्धाः ॥ ५०१ ॥ सप्तपदे । सप्तसु पवेश्वष्ठापमहादेव्यः । पृथक प्रत्येकमाधिमे प्रथमयुगले एकेकस्या देण्या: स्वम समं समजलपरिवारका जपर्यटप्रिमिता ॥ ५ ॥
कल्पवासी देवों की अग्र एवं परिवार देवांगमाओं का प्रमाण कहते है :
पाचार्य :- सातों स्थानों में आठ आठ महादेवाङ्गनाएँ हैं । प्रथम स्थान में एक-एक महादेवांगना के आप सहित सोलह सोलह हजार परिवार देवांगनाएं हैं। उपरिम स्थानों में परिवार देवपिनाओं का प्रमाण अधं अर्ध होता मया है ।। ५०९ ॥
विशेषार्थ ;-सातो स्थानों में आठ आठ महादेवांगनाएं हैं। प्रथम स्थान में एक एक महादेवी के आप सहित सोमह सोलह हजार परिवार देवियां हैं । तथा वितीयादि स्थानों में परिवार , देवांगनाओं का प्रमाण अर्ध अर्ध होता गया है। अथ तासामग्रदेवीनां नामानि गाथाद्वयेनाह
सचिपउन सिवसियामा कालिंदीसुलस मज्जुकाणामा | माणुचि जेवदेवी सन्वेसि दक्खिणिदा ॥ १० ॥ सिरिमदि रामसुसीमा पभावदि जयसेण णामय सुसेणा। वसुमित्त वसुंधर वरदेवीमो उचरिंदाणं ॥ ५११॥ शाचिः पधा शिवा श्यामा कालिन्दी सुलसा अज्जुकानामा । भानुरिति ज्येष्ठादेव्यः सर्वेषां दक्षिणेन्द्राणाम् ।। ५१० ।। श्रीमती रामा सुसीमा प्रभावती जयमेना नामा सुषेणा।
वसुमित्रा बगुधरा वरदेव्यः उत्तरेन्द्राणाम् ॥ ११ ॥ सधिपउम । शची: एमा शिक्षा श्यामा कालिन्दी तुलसा प्रज्जुका मामा भाचरेत्येता ज्येgण्यः मषा वक्षिणेन्द्राया ॥ ११ ॥
सिरिमति । श्रीमती रामा मुसीमा प्रमावती जयनारया सुषेणा। सुमित्रा वसुम्पति वारेभ्यः उत्तरेताम् ॥ ५५ ॥
दो गाथामा द्वारा अन देवांगनामों के नाम कहते हैं