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________________ ४३८ गिलोकसारा पाथा: ५० ___ सतपये। छरमुगलेत्याधुक्त सतपवे देवीना होदयः मानो पाचशतयोबमानि उत्तर पञ्चाशत्पबाशाहवं कर्सम्यं । सर्वेषां बेबाना देवानां च गृहयन्यासी यासंख्यं उपयस्य पञ्चमभागो पशमभागश्च ॥ ५० ॥ देवानामा के ग्रहों का का कर राबंद्रहों का विस्तार मौर आयाम कहते क्रमांक ध्यान गापार्थ :-सात स्थानों में देवाङ्गनाओं के गृहों का उत्सेष कमशः पांच सो पोजन तथा पचास पचास योजन हीन है। सम्पूर्ण ग्रहों की दीर्घता ( लम्बाई ) उत्सेध के पांचवें भाग प्रमाण और ध्याम ( चौड़ाई ) दशचे भाग प्रमाण है ॥ ५० ॥ विशेषार्ष:-छह युगलों के छह स्थान और मानवादि चार कल्पों का एक स्थान इस प्रकाप सात स्थानों में देवाङ्गनाओं के गृहों का उस्सेध क्रमश: ५.०, ५०, ४.०, ३५०, ३००, २५० भौर २०० योजन प्रमाण है । सम्पूर्ण देवों और देवाङ्गनाओं के ग्रहों की लम्बाई उत्सैध का पांचवा भाग और चौड़ाई दवा भाग है । यथा। देवों के गृह देवांगनामों के गृह .. । उस्सेध । लम्बाई । चौडाई उत्सेभ । लम्बाई । चौड़ाई योजनों भीलों यो मी | यो० मीलों यो.. मीलों में यो० मोलों | यो मीलों में | में ' में । में | में र सौधर्मशान | ६.० २| सानत्कु.-माहेन्द्र ५०० ३६०० ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर | ४५० लान्तव-कापिष्ट ४०० ५.! २८०० शुक्र-महाशुक्र | शतार-सहस्रार आनतादि चार अधो ग्रेवेयक मध्य । उपरिम अनुदिश । ५० ४.० | १८६० १२. अनुत्तर ४०.०। ३
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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