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________________ पापा ।५.६-५०७-१०८ वैमानिकलोकाधिकार ता चतस्रः स्वर्ग कामा कामिनी च पपगग्वा च । ततो भवति अलम्बूषा सर्वेन्द्रपुराणामेष कमः ।। ५०६ ।। तामो पउ। सोषाविस्वर्गे कामा कामिनी च पगन्धा च ततोऽलम्वेति तावतो भवन्ति । सर्वेमपुराणामेव एकमो भातपः ॥ ५०६ ॥ गणिका महत्तरियों के नाम गाथार्थ :-सौधर्माद चार स्लों की गणिकामहत्तरियों के नाम क्रमशः कामा, कामिनी, एधगधा और अलम्बूषा है। सर्व इन्द्रों के नगरों का ऐसा ही क्रम जानना चाहिए ।। ५०६ ॥ विशेषार्ष:-सुगम है। अथ मौधर्मादिषु गृहोत्सेधं प्रतिपादपति छज्जुगलसेसकप्पे तिसिसु व अणुद्दिसे अपवरगे । गेहुदओ छप्पणसय पण्णास रिणं दलं चरिमे ।। ५.७ ।। पद युगलशेषकल्पेषु त्रिस्थिषु च अनुदिशि अनुत्तरके । गेहोदयः षट् पश्चशत पञ्चाशहणं दलं चरमे ॥ ५० ॥ छज्जुगल । षट्सु युगलेषु पोषकल्पे व प्रिस्त्रिषु प्रैवेयकेषु अनुदिशायां पनुत्तरे बेलि बावशस्थानेषु होषयः पछतायोजनानि पशतयोगमानि तस उपरि पाशरणं कसब्य । परमे स्याने उपापाई जातव्यम् ॥ ५०७॥ सौषर्मादि बारह स्थानों में गृहीं की ऊंचाई का प्रतिपादन करते हैं-- पापाई :-छह युगम और शेष कल्पों में तथा तीन तीन वेयक, अनुदिश और अनुत्तरों के गृहों का उत्सेध कम से छह सौ, पांच सौ, तथा मौ पर्यन्त ५०-५० योजन हीन और इसके आगे यन्त तक अर्घ अषं प्रमाण होता हुआ है ॥ ५.७ ।। विशेषार्थ :-छह युगलों के ६ तथा आनतादि चार कल्पों का एक, तीन प्रक्षेपकों के तीन तथा अनुदिश और अनुत्तरों का एक, एक इस प्रकार कुल बारह स्थानों के गृहों का उसेध कम से ६०० योजन, ५.०, ४५०, ४००, ३५०, ३००, २५०, २००, १५०, १००, ५० और २५ योजन प्रमाण है। अथ देवीनां गेहोरसेधेन सर्वगृहाणां विस्तारामामो कथयति-- सतपदं देवीणं गिहोदयं पणसयं तु पाणरिणं । सम्वमिह दिग्धवासं उदयस्स य पंचमं दसमं ।। ५०८ ।। समपदे देवीनां गहोदयः पञ्चशतं तु पनाशहणं । सर्वगृहर्दध्यवासी उदयस्य च पञ्चमी दशमः ।। ५०८।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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