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________________ गाथा: ५०३-५०४ वैमानिकलोकाधिकार अब तवनमध्यस्थनत्यवृक्षस्वरूपं निरूपयन् तच्चत्यनमस्कारमाह चउवेचदुमा जंवमाणा कप्पेसु ताण चउपासे | पल्लंकगजिणपतिमा पत्तेयं ताणि बंदामि || ५०३ ॥ चतुश्चत्पद्रुमाः जम्बूमाना: कल्पेषु तेषां चतुः पार्वेषु । पल्यगजिनप्रतिमाः प्रत्येक तानि बन्दामि ॥ ५०३ ।। पनवेत्त । प्रत्याराचैत्यमा जम्बूवृक्षप्रमाणाः सौधर्माधिषु कल्पेषु तेषां चतुई पाश्वेषु पल्यजिमप्रतिमा: प्रत्येक ताः बन्वे ॥ ५०३ ॥ वन के बीच में स्थित चैत्यवृक्षों के स्वरूप का निरूपण करते हुए तन चैत्यवृक्षों को नमस्कार करते हैं गामार्ग:.-सीधमकिरणों में नाव पडभी दा चैत्यवृक्षा, जम्बूवृक्षप्रमाण वाले हैं। प्रत्येक चैत्यवृक्ष के चारों पार्श्वभागों में पल्यङ्कासन एक एक जिनप्रतिमा है, उन्हें में ( नेमिचन्द्राचार्य) नमस्कार करता हूँ ।। ५०३ ।। विशेषा:-सौधर्मादि कल्पों में अशोकादि चारों वनखण्डों में जो चार चैत्यवृक्ष है. उनका प्रमाण जम्बूवृक्ष के प्रपाण सहा । उन चारों वृक्षों में से प्रत्येक वृक्ष के चारों पाश्वं मागों में पल्यासन स्थित एक एक जिनप्रतिमा है. उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ। इदानीं लोकपालानां नगरस्वरूपमाह तत्तो बहुजोयणयं गतूण दिसासु लोगवालाणं । जयराणि मजदसंगुणपणघणवित्थारजुवाणि ॥ ५०४ ॥ ततो बहुयोजनकं गत्वा दिशासु लोकपालानाम् । नगराणि अयुतसंगुरणपश्चधनविस्तारयुक्तानि ।। ५०४ ।। तत्तो बहु । ततो बहुयोजनानि गरमा विज्ञासु लोकपालाना मगराणि प्रयुत १०००० संगुणितपश्चधनविस्तारयुक्तानि १२५००००। ५.४ ॥ सब लोकपालों के नगर का स्वरूप कहते हैं गामार्य :-उन वन खरद्धों से बहुत योजन दूर जाकर पूर्वादि दिशाओं में लोकपाल देवों के नगर है। जो अयुन ( १००००, दश हजार ) से गुणित पचयन ( १२५) प्रमाण विस्तार से संयुक्त विशेषार्थ:- उन वन खण्डों से बहुत योजन आगे जाकर पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर इन चारों दिशाओं में लोकपाल देशों के नगर हैं । जिनका विस्तार अयुत अर्थात १०००० से गुणित पञ्च धन ( १२५ ) अर्थात् ( १००००४ १२५=१२५०००० ) साढ़े बारह लाख पोजन है।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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