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________________ त्रिलोकसार गाथा: ५०२ इन कोटों के अन्तराल में स्थित देवों के भेद दो गाथाओं में कहते हैं: पायार्थ :-सेनापति और सनुरक्षक देव प्रथम अन्तराल में, तीनों परिषद देव दूसरे अन्तराल में, तीसरे अन्तराल में सामानिक देव तथा चौथै अन्तराल में कारोहक, आभियोग्य और किल्विषिकादि देव अपने अपने योग्य प्रासादों में रहते हैं। पांचवें अन्तराल से अलाव ( ५० हजार ) योजन आगे जाकर नन्दन वन हैं इनके विशेष लाम लागे कहेंगै ॥ ५००, ५०१॥ विशेषार्ष:-कोटों ( प्राकारों ) के प्रथम अन्तराल में सेनापति और तनुरक्षक देव रहते हैं। द्वितीय अन्तराल में तीनों पारिषद, तृतीय अन्तराल में सामानिक देव तथा चतुर्ष अन्तराल में वृषभ, तुरङ्गादि पर सवारी करने वाले आरोहक आभियोग्य एवं किल्विषिकादि देव अपने अपने योग्य भवनों में रहते हैं। पांचवें कोट से ५० हजार योजन प्रागे र सदन का है. ये बात मेने माले है. इसलिए इन्हें नन्दन वन कहते हैं । इनके विशेष नाम आगे कहेंगे। कमिति चेद सुरपुरबहि असोयं सत्चच्छदचंपचूदवणखण्हा । पउमदहसममाणा पञ्यं चेचरुक्खजदा ।। ५.२॥ सुरपुरबहिः अशोक सप्तच्छदचम्पचूतवनखण्डाः । पद्महदसममाना: प्रत्येकं चन्यवृक्षयुताः ॥ ५०२ ॥ सुरपुर। सुरपुराइ बहिः 'पूर्वाधिषिक्षु पशोकवनखएडा: सप्तम्यवधनसणाः पम्पकवमलाइतबम खराः पपलवसमप्रमाणाः सहनयोजमायामासपर्वष्यासा इत्पः। प्रत्येकमेककस्यवृक्षयुताः ॥ ५०२ ॥ वनों के विशेष नाम एवं प्रमाण : गावार्थ:-देवों के नगर से बाहर पद्मसरोवर के प्रमाण को धारण करने वाले तथा एक एक चेत्यवृक्ष से संयुक्त अशोक वनखण्ड, सप्तरवनवण्ड, पम्पकवनखण्ड और आप्रवनखण्ड है। ५०२ ।। विशेषाप :--देवों के नगरों से बाहर पूर्णादि चारों दिशाओं में क्रम से अशोक, सप्तच्छा, चम्पक और आम्रवनखण्ड हैं। प्रत्येक का प्रमाण पद्मदह नाम सरोवर के सहा अर्थात् एक हजार योजन सम्बे और पांच सो योजन चौड़े हैं। तया प्रत्येक वन खण्ड एक एक चैत्यवृक्ष से संयुक्त है। १ पूर्वोक्तारिषु (.., प.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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