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गाथा । ४६९-४९०
वैमानिकलोकाधिकार
चुलमीदीय असीदी विहरी सत्तरीय जोयणगा | बावय बीसमहम् समचउरम्माणि रम्माणि ॥ ४८६ ।। चतुरशीतिः अशीतिः द्वासप्ततिः सप्ततिश्च योजनानि ।
यावदिशसहस्र' समचतुरस्त्राणि रम्याणि ॥४८९ ।। चुलसी । चतुरशीतिसहस्राणि प्रशीतिसहस्राणि पासप्ततिसहस्राणि सप्तसिसहस्राणि योजनानि यावविंशतिसहस्र तावद्दशसहस्रोनं कर्तव्यं एतल्यामयुक्तानि मगराणि समबरनारिण रम्पाणि ॥ ४ ॥
गाथार्थ :-चौरासो, अस्सी, बहत्तर और सत्तर हजार योजन तथा इसके प्रागे जब तक बीस हजार योजन न रह जावें तन्त्र तक दश दश हजार योजन कम नगरों के ज्यास का प्रमाण है । ये सभी नगर समचतुरस्र और रमणीक हैं ।। ४८६ ।।
विशेषार्थ:--सोधर्म कल्प में ८४ हजार मेजर ध्या: नाले, ऐसाल में 50 हतार सानत्कुमार में ७२ हजार, माहेन्द्र में ४० हजार, ब्रह्मयुगल में ६० हजार, लान्तव युगल में ५० हजार, शुक्र पुगल में ४० हजार, शतार युगल में ३० हजार तथा मानतादि चार कल्पों में प्रत्येक २०.२० हजार योजन प्रमाण न्यास वामे नगर हैं। इन नगरों की लम्बाई चौड़ाई का प्रमाग समान है अतः • समचतुरन तथा रमणीक हैं। अथ उक्तनगरप्राकारोत्सेधस्वरूपमाह
छज्जुगलसेसकप्पे तप्पायाख्दय जोयणं तिसदं । पण्णासणं पंचम तीसूर्ण उवरि वीमूणं ।। ४९० ॥ पट्युगलशेपकल्प तत्याकारोदयः योजनं विषानं ।
पश्चाशदुनं पनामे विशदूनं उपरि विशोनम् ॥ ४० ॥ छज्जुगल । षट्युगलेषु शेषकल्प घेति सप्तस्थाने तत्तनगरप्राकारोक्यः पायो योजनानां त्रिशतं उपरि पश्चाशदूनं पश्चमस्थाने शिवून तत उपरि विशत्यूनं नातम्यं ॥ ४० ॥
उक्त नगरों के प्राकारों को ऊंचाई का स्वरूप कहते हैं :--
गाथार्थ:-छह युगलों के छह स्थान और शेष कल्पों का एक स्थान इन सात स्थानों में प्रासादों की ऊँचाई का प्रमाण क्रम से ३०० योजन, तीन स्थानों में ५. योजन फम, पांचवें स्थान में ३० योजन और शेष में २० योजन कम है ॥ ४६॥
विशेषाय :-छह युगल स्वर्गों के छह स्पान मोर कोष चार कल्पों का एक स्थान. इस प्रकार इन सात स्थानों में उनके नगरों के प्रासादों की ऊंचाई- सौधर्म युगल की ३०० योजन, सानत्कुमार