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पाया। ४०४ से ४७ वैमानिकलोकाधिकार
४२३ दद्वियं विमाणं मगसमकप तु सरस चउपासे । वेलुरियरजतसोकं मिमक्कसारं तु पुष्वादी ।। ४८४ ।। चन्द्रस्थितं विमानं स्वकस्वककल्पं तु तस्य चतुः पार्थे ।
वैडूर्य रजताशोक मृपकसारं तु पूर्वादिषु || ४८४ ॥ बिहिसं स्थित विमानं स्वकीयस्थकीयकरूपापकं तु पुन: तस्य चतुः पार पडूर्यरमताशोकमृषाकसारात्यविमानानि पूर्वाधिशिनु तिष्ठन्ति । अयं विषिः सर्वेषां बक्षिणेमाण ॥ ४८४ ॥
दो गाथाओं द्वारा उन विमानों के नाम कहते हैं :
गाथार्थ :---अपने अपने कल्प का नाम हो इन्द्र स्थित विमान का नाम है। इस विमान के चारों पाव भागों की पूर्यादि दिशाओं में कम स वैडूर्य, रजत, अशोक और भूपत्कसार नामक विमान स्थित हैं ।। ४८४ ॥
विशेषाथ :- जो जो नाम कल्पों के है वही वही नाम इन्द्र स्थित विमानों के हैं। जैसेमोधर्मेन्द्र के विमान का नाम सौधर्म, ईशानेन्द्र के विमान का नाम ऐशान है। इत्यादि, इन्द्र स्थित विमान के चारों पाश्वभागों में पूर्व दक्षिण आदि दिशाओं के क्रम से वैडूर्य, रजत, अशोक और मृषत्कसार नामक विमान स्थित है । यह विधान सर्व दक्षिणेन्द्रों का है।
रुचकं मंदरसोकं सचच्छदणामयं पिमाणं तु । सब्बुचरइंदाणं विमाणपासेसु होति कमे ॥ ४८५ ।। रुव मन्दराशोक सप्तच्छदमाम विमानं तु ।
सर्वोत्तरेन्द्राणां विमानपाश्र्वेषु भवन्ति क्रमेण ।। ४८५ ।। अच। पचकमबराशोकससवनामामि विमानानि सर्वोत्तरेखाणा स्वस्वविमानचतुःपाई कमेण भवन्ति ॥ ४५ ॥
गाचार्य :- सर्व उत्तरेन्द्रों के विमानों के चारों पाश्र्व भागों में क्रमश: मचक, मन्दर, अशोक और मातमद नामक विमान स्थित है ।। ४८५ ॥
विशेषार्थ :-सुगम है। अथ सौधर्मादिदेवानां मुकुटचिङ्गानि गाथाद्वयेनाह
मोहम्मादीबारस साणदारणगजुगलए वि कमा । देवाण मउल चिशे वराइमयमहिसमच्छाबि ।। ४८६ ।। कुम्मो दद्दरतुग्या तो कुंजर चंद सप्प खग्गी य । छगलो बमहोतचो चोद्दममो होदि कप्पतरू ॥ ४८७ ।।