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________________ ४२२ त्रिलोकसार पावा:४३ कल्पों के विमान वायु के ऊपर स्थित हैं, तथा ब्रह्म स्वर्ग से लेकर सहस्रार स्वर्ग तक के अष्ट कल्पों के विमान जल, वायु ( उभयाधार ) के ऊपर अवस्थित हैं और मानतादि से सर्वार्थ सिद्धि पर्यन्त के सभी विमान शुम आकाश में स्थित हैं। अधुनेन्द्रस्थित विमानं कषति छज्जुगलसेसकप्पे भारतमाम्ह सविधम्मि दोहीणकम दकिवणउत्तरभागम्हि देविदा ।। ४८३ ।। पड़ युगलशेषकरमेषु अष्टादशमे अरेणीबद्ध । विहीनक्रमं दक्षिणोत्तरभागे देवेन्द्राः ।। ४८३ ।। वाज्जुगल । षट्सु युगलेषु शोषकल्पे च ययासंख्य प्रपमयुगले स्वस्वधरमेगासम्बम्धे महावने श्रेणीदे द्वितीयावी छ विहीनकमेण श्रेणीब १८ । १६ । १४ । १२१।८६ दक्षिण मागे दक्षिणेचा उत्सरमागे उत्तरेनास्तिष्ठन्ति ॥ ३ ॥ अब इन्द्र स्थित विमानों का कथन करते है : गाषा :-छह युगलों और मवशेष फल्पों में कम से अठारह श्रेणीबद्ध में तथा इससे भागे दो दो हीन संम्मा वाले भणीबद्धों में, दक्षिण भाग में वक्षिणेन्द्र और उत्तर भाग में उत्तरेन्द्र रहते हैं ।। ४६३ ।। विशेषार्थ:-प्रथम युगल के ३१ वे प्रभ नामक इन्द्रक से दक्षिण श्रेणी में स्थित जो १८ वा अंगीबद्ध विमान है, उसमें सौधर्म इन्द रहता है, तथा प्रभा नामक इन्द्रक की उत्तर दिशा के अठारहवें श्रेणीबद्ध विमान में ईशान इन्द्र रहता है। इसके ऊपर चक नामक इन्द्रक के दक्षिण में स्थित १६वें पणीबद्ध में सानत्कुमार और इसी इन्द्र क को उत्तर दिशा के १६ व अंगोबद्ध में माहेन्द्र इन्द्र निवास करता है। इसके ऊपर ब्रह्मोत्तर नामक इन्द्रक की दक्षिण दिशा के १४ श्रणीबद्ध में ब्रह्मोत्तर इन्द्र स्थित है। इसके ऊपर लान्तव नामक इन्द्रक को दक्षिण दिशा के १२ वें श्रेणीबद्ध विमान में लान्तव देव स्थित है। इसके ऊपर महाशुक्र नामक इन्द्रक की उत्तर दिशा में १. में अंगोबद्ध विमान में महाशुक इन्द्र रहता है। महनार नामक इन्द्रक की उत्तर दिशा के ८ दें अपीबद्ध विमान में सहस्रार इन्द्र रहता है । इसके ऊपर कम से आनत नामक इन्द्रक की दक्षिण दिशा के ६ श्रेणीबद्ध विमान में प्रानत इन्द्र और उत्तर दिशा के ६ में श्रेणीबद्ध विमान में प्राणत इन्द्र रहता है। मारण नामक इन्द्रक की दक्षिण दिशा के श्रेणीबद्ध विमान में आरण इन्द्र तथा उत्तर दिशा के ६ में श्रेणीबद्ध विमान में अच्युत इन्द्र रहता है। अथ तेषां विमाननामानि गाथादयेन कषयति
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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