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पाथा : ५२ वैमानिकलोकाधिकार
४१ दोहो । मौषर्माविषु योद्धयोः कल्पयोः ब्रह्माविषु चतुर्ष चतुर्ष कल्पेच मिलिया चतुर्ष स्थानेषु यथासंख्यं पश्वाः खलु कृष्णवर्जचतुर्व: गौलोनत्रिवणा: रक्तोनविषा: तत मानसारिन् सर्वद शुग्णय पाविमलागि रसुः :: ::
विमानों के वर्ण क्रम का वर्णन करते हैं :
मायार्थ :--दो कल्पों में पांच वणं वाले, दो कल्पों में कृष्ण के बिना चार वणं वाले, ब्रह्मादि चार में ( कृष्ण ) नील के बिना तीन वर्ण वाले, शुक्रानि चार में रक्त बिना भी दो वणे वाले और आनतादि से लेकर ऊपर के सभी विमान मात्र शुक्ल वर्ण वाले होते हैं ।। ४८१ ॥
विशेषार्थ :-सोधगान कल्पों के विमान पांच वर्ण वाले हैं। सानाकुमार-माहेन्द्र कल्पों के विमान कृष्ण के बिना शेष चार वर्ण वाले हैं । ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तब और कापिष्ठ कल्पी के विमान कृष्गा और नील बिना तीन वर्ण वाले हैं। शुक्र-महायुक, शतार और सहस्रार कल्पों के विमान कृष्णं, नील और रक्त वर्ण मे रहित मात्र दो वर्ण वाले हैं, और पानतादि से लेकर अनुत्तर पर्यन्त के सभी विमान मात्र शुक्ल वर्ण के होते हैं। इदानीं विमानाधारस्थान निरूपयनि--
दुसु दृसु मसु कप्पे जलवादुभये पट्टियविमाणा । सेसषिमाणा सवे आमासपाया होति ।। ४८२ ।। द्वयोः द्वयोः अवसु कल्पेषु जलवातोभये प्रतिष्ठितविमानाः ।
शेषविमाना: सर्वे प्राकापाप्रतिष्ठिता भवन्ति ॥ ४८३ ।। दुसु दुसु । योयोः कल्पयोब महाविष्य कापेषु मिलिया त्रिस्थानेषु यथासंस्म बमप्रतिक्षितविमाना: वात प्रतिष्ठितांवमानाः उभयप्रतिलितविमानाः शेषविमानाः सर्वे प्राकाशप्रतिविता भवन्ति ॥ ४५२ ॥
विमानों के आधार-स्थान का निरूपण करते हैं : -
पाघार्य :-दो कल्पों के विमान बलाधार, सानत्कुमारादि दो कल्पों के वायु आधार, ब्रह्मादि आठ वर्गों के उभय । जलवायु ) आधार और आनतादि से अनुत्तर पर्यन्त के सभी विमान शुद्ध माकाश के आधार हैं।। ४६२ ।।
विशेषार्थ :---सौधर्मशान कल्प के विमान जलके ऊपर अवस्थित हैं। सानत्कुमार माहेन्द्र
१ विमाना: स्युः ( २०, प.)। २ वायू। क०,५०)।