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पिलोकसार
गाथा: ४७९
सौधर्मादिकों में संख्यात और असंख्यात योजन विस्तार वाले विमानों का प्रमाण दो गाथाओं द्वारा कहते हैं :
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गावार्थ :-- कल्पवासियों में अपनी अपनी राशि के पांचवें भाग प्रमाण विमान संख्यात योजन विस्तार वाले हैं, तथा अघोय वेयक में तीन, मध्यम वेयक में १८, उपरिम ग्रैवेयक में १७, अनूदियों में एक और अनुत्तरों में एक विमान संख्यात योजन विस्तार वाले हैं ।। ४७८ ।।
विशेषार्थ :- कल्पवासियों में अपनी अपनी बत्तीस लाख, बट्टाईस लाख इत्यादि राशि के पचिव भाग प्रमाण संख्या योजन विस्तार वाले विमान होते हैं। जैसे ३२ लाख का पाँचवाँ भाग ( ७२००००० ) = ६४०००० है, अर्थात् सोधर्म कल्प में संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों का प्रमाण ६४०००० है, इत्यादि । अधोवेयक में ३, मध्यम में १८ उपरिम वेयक में १७, अनुदिशों में एक और अनुत्तरों में एक विमान संख्यातयोजन विस्तार वाले है ।
सगसग संस्खेज्जूणा सगमगरामी असंखवासगया | अवा पंचमभागं चठगुणिदे होंति कप्पे ॥ ४७९ ॥ स्वकस्वक संख्येयोनाः स्वकस्व करापायः असंख्यन्यासगत्ताः । अथवा पश्चमभागं चतुगुणिते भवन्ति कल्पेषु ॥ ४७९ ॥
सगसग | स्वकीयस्वकीयसंख्यात योजन विमानसंख्या ६४०००० नाः स्वकीयवतीसाबिराशयः २५६०००० | संख्यातयोजमध्यासविमानानि । प्रथवा राशेः ३२ लक्ष पञ्चमभागसंख्या ६४०००० मितिः २५६०००० कल्पेष्वसंख्यासयोजनव्यास विमानसंख्या भवति ॥ ४७६ ॥
गाथार्थ :- कल्पवासियों में अपने अपने संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों के प्रमाण से रहित अपनी अपनी राशि गत विमानों का प्रमाण हो असंख्यात योजन विस्ताय वाला है । REET अपनी अपनी राशि के भाग प्रमाण राशि असंख्यात योजन विस्तार वाली
है ।। ४७६ ।।
विशेषार्थ : --- अपने अपने कल्प की ३२ लाख आदि राशि में से संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों का प्रमाण घटा देने पर जो अवशेष रहे वह संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों का प्रमाण होगा। जैसे :- सौधर्मकल्प की कुल राशि ३२००००० - ६४८००० संख्यात योजन वाले २५६०००० विमान असंख्यात योजन प्रमाण वाले हैं। अथवा ३२ लाख के ५ वें भाग में चार का गुणा करने में भी असंख्यात योजन प्रमाण वाले विमानों का प्रमाण प्राप्त होता है। जैसे :-- ३२०००००४४ = २५६०००० सौधर्म कल्प में असंख्यास योजन विस्वार वाले विमानों का प्रमाण है । इसी प्रकार द्वितीयादि कल्पों में जानना चाहिए ।
अथ तेषां विमानानां बाहुल्यमाह