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गाषा.४८०
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वैमानिकलोकाधिकार छज्जुगल सेसकप्पे नितिसु सेसे विमाणतलबहलं । इगिषीसेमारमयं णवण उदिरिणक्कमा होति ।। ४८० ।। षड युगलेषु शेषकल्पेषु त्रिस्त्रिषु दोषे विमानतलबहरू।
एकविशत्येकादशशतं नवनवति ऋणक्रमा भवन्ति ।। ४० ॥ छज्जुगल । सौधर्माविषु षत्सु युगलेषु मानतापितु कल्पेषु प्रायोपवेयताविपु निस्त्रियनुत्तरयोश्च मिमिरवकादशसु स्पानेषु विमामतलबाहल्यं मयासंख्यं पावावेकविक्षस्यधिकारशा ११२१ उपरि सत्र नवमति ऋणमा भवन्ति ॥ ४८० ॥
उन विमानों का बाहुल्य कहते हैं___ गापा:-पूर्व के छह युगलों में, शेषकल्पवासियों में, तीन तीन अधो आदि ग्रंयकों में, शेष अनुदिश और अनुत्तरों में विमानसाल का बाहुल्य-आदि एक हजार एक सौ इकोस योजन है। इसके ऊपर क्रमशः ; E६. योजन होन होता गया है ।। ४८० ॥
विशेषार्ष :-सोधादि छह युगलों के ६ स्थान, अवशेष मानतादि कल्पों के एक एक स्थान, अधौ-मध्य आदि तीन प्रवेयकों के तीन स्थान, अनुदिशों का एक और अनुत्तरों का एक इस प्रकार सब मिलाकर ११ स्थानों में विमान तलों का गहल्य यथाक्रम प्रथम स्थान का ११२१ योजन है और इसके आगे आगे सर्वत्र ९९.९९ योजन हीन होता गया है।
संध्यातादि विमानों का प्रमाण एवं बाहुल्य का प्रमाण :
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