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त्रिलोकसार
पाया : ४७६
सान्तव कापिष्ठ कल्प मैं-५००० – ( १५६ -२) =४६४९ प्रकीर्णक विमान हैं । शुक्रमहाशुक्र . .-४०:०० -(१+१) =३९९२७ . . . शतार-सहस्रार -६००० -(६८+१) =५६३१ बानतादि ४ कल्पों में- . -(२२४+६) = ३७० . " " अधोवेयक में:-११-(१०+३) प्रकारांक विमान है। मध्य . .:-१०७-( ७२+३) = ३२ . . .। उपरिम, 1-1 -( ३६+३) =५२ . । अनुदिशों में .- -(४+१) = . . .। अनुत्तर स्वर्ग में प्रकीर्णक विमानों का अभाव है। श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानों का चित्रण :
प्रथम स्वर्ग के प्रथम ऋतु इन्द्रक की चारों दिशाओं में १२, ६२ थणीबद्ध, शेष
प्रकोणक
प्रथम स्वर्ग के ३१वेंप्रभा नामक इन्द्रक की चारों दिशाओं में ३२, ३२
घणीबद्ध, शेष प्रकीर्णक
अथ दक्षिणोत्तरेन्द्रयोरिन्द्रकोणीबद्धप्रकीर्णकविभागं प्रदर्शयति--
उचरसेढीचा वायवीसाणकोणगपइण्णा । उत्तरहंदाणिवद्धा सेसा दक्खिणदिसिंदपडियद्या ।। ४७६ ॥ उत्तरप्रेणीबद्धा वायग्रेशरनकोणगप्रकीर्णानि ।
उत्तरेन्द्रनिबद्धानि शेषाणि दक्षिणदिगोन्द्रप्रतिबद्धानि ॥ ४७६ ॥ उत्तरसेटी । सरणीषया वायपेशानकोणगतप्रकीराकानि । उसरेन्द्रनिमानि । शेषारिण सर्वविमानानि दक्षिणविगिन्द्रप्रतिबबानि ॥ ४७६ ।।
दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र के इन्द्रक, घणीवर और प्रकीक विमानों का विभाग सशति है :