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वैमानिक लोकाधिकार
श्रेणीबद्ध विमान तो स्वयम्भूरमण समुद्र के निकटवर्ती शेष ( ३१ ) स्वयम्भूरमण समुद्र से अर्वाचीन तीन द्वीप और हैं ।। ४७४ ।।
गया। ४०५
विशेषार्थ :- प्रथम पटल में प्रथम ऋतु इन्द्रक विमान की एक दिशा में ६२ श्र ेणीबद्ध विमान हैं। इनमें आधे अर्थात ३१ श्र खोवद्ध विमान तो स्वयम्भूरमण समुद्र के ऊपर स्थित हैं। शेष ३१ में से १५ श्र ेणीबद्ध स्वयम्भूश्मा द्वीप के ऊपर श्रीबद्ध अद्दीन्द्रवर समुद्र के ऊपर ४ श्रेणीबद्ध अहीन्द्रवरी के ऊपर श्रंगो बद्ध देववर द्वीप के ऊपर और शेष
के १ श्र ेणीबद्ध विमान यक्षवर समुद्र के ऊपर अवस्थित है।
अथ प्रकीशकानां स्वरूप प्रमा चाह
वीणं । मणीबद्धानां विन्दाले अन्तराले पुष्पास्यि प्रकोशंकानि एव स्थितानि विमानानि प्रकोनामानि भवन्ति । लागि घरपोक होना शिसमानानि । तत्कर्ष ? बचोसट्टाबो समित्यायुक्तसौधर्माविशशिभ्यः भगीन्द्रकेष्वपनीतेषु यो राशिरवशिष्यते तत्समामानि ।। ४७५ ।।
प्रफोक विमानों का स्वरूप और प्रमाण कहते है :
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सेढीणं विच्चाले पुष्कपइण्णा इव द्वियविमाणा । होति पण्णणामा सेढींदवहीणरासिसमा ।। ४७५ ।। श्री गोनां विचाले पुष्पप्रकीरण कानि इत्र स्थितविमानानि । भवन्ति प्रकीर्णकनामानि श्रणीन्द्रकहीन राशिसमानि ॥। ४७५ ।।
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गाथा: श्रेणीबद्ध विमानों के बीच बीच में अर्थात् अन्तराल में बिखरे हुए पुष्पों के सदृश जो विमान स्थित हैं उन्हें प्रकीरणंक कहते हैं। इनका प्रमाण इन्द्रक और श्रेणीबद्ध विमानों की राशि से दोन स्व राशि समान है ।। ४७५ ।।
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४१५
उपरिम भाग में है और समुद्रों के ऊपर स्थित
तीन
विशेषार्थ :- श्रेणीबद्ध विमानों के अन्तराल में पंक्ति होन, बिखरे हुए पुष्पों के सहरा यत्र तत्र स्थित विमानों को प्रकीकि विमान कहते हैं । प्रत्येक स्वर्ग की जो संख्या है, उसमें से अपने अपने पटलों के इन्द्रक और श्रीबद्ध विमानों की संख्या कम करने पर जो प्रमारण होता है। यथा
अवशेष रहे वही प्रकीर्णक का
सोधर्म कल्प में ऐशान सानत्कुमार कल्प मेंमाहेन्द्र " ब्रह्मब्रह्मोत्तर कल्प में- ४०००००
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श
३२०००००- ( ४३७१ + ३१ ) = ३१६५५६८ प्रफीक हैं। २८०००००- ( १४५७+ ) - २७९८४४३ १२०००००- ( ५६६+७ = ११६६४०५ -७९९६०४
८००००० - ( १६६÷०१
(३६०+४)
३९९६३६
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