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पाथर:
वैमानिकलोकाधिकार
यहाँ दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र के विभाग से सङ्कलित धन प्राप्त करने का विधान कहते हैं:सौधर्म कल्प में एक विशागत श्रेणीबद्ध विमानों का प्रमाण १२ है । कि पूर्व, पश्चिम और दक्षिण ये तीनों दिशाएं इसी कल्प के प्राचीन हैं, अत: इन तीनों दिशाओं के श्रेणीबद्ध विमानों का प्रमाण प्राप्त करने के लिए ६२ को ३ से गुगिन करना चाहिए । इसका गुणनफल ( ६२४३) १८६ प्राप्त हुवा। यह १८६ ही मुख अति प्रभव का प्रमाण है, हवा यही आदि इन। उ न ३। इसी को हानि चय भी कहते हैं, क्योंकि सोधम सम्बन्धी तीन दिशाओं के तीन श्रेणीवन प्रत्येक पटल में घटते गये हैं। पटल ३१ हैं अनः गच्छ ५१ है। अब यही हीन सङ्कलन का आश्रय कर घन निकालते हैं 'पक्षमेगेण विहीणं' इत्यादि गाथा सूत्र १६४ के अनुसार पद ( गच्छ ) में से एक घटा कर आषा करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसको उत्तर धन ( ३ ) से गुगिन कर लब्ध को प्रादि धन । १८६ ) में में घटा कर अवशेष को पद ( ३१ ) से गुणित करने पर सोधर्म संबंधी श्रेणीबद्ध विमानों का प्रमाण प्राप्त होता है। यथा:--'४३-४५; ( १८६-४५ ) ४३१-४३७१ सौधर्म के गोबद्ध विमानों का प्रमाण है। इममें सौधर्म कल्प के ३१ इन्द्रक मिला देने पर (४३७१ +३१)-४४०२ प्रमाण प्राप्त होता है।
उपयुक्त ३१.इन्द्रक विमानों की केवल उत्तरदिशागत भणीबद्ध विपान ही इस कल्प के अन्तर्गत हैं अतएव ऐशान कल्प का आदि धन १२, उत्तर धन ! और गच्छ ३१ है। उपयुक्त नियमानुसार यहाँ (ऐशान कल्प में) x १ = १५ (६२-१५)४३१ - १४५७ श्रेणी बन विमानों का प्रमाण प्राप्त होता है । यहाँ इन्द्रक विमानों का प्रमाण नहीं मिलाना, क्योंकि उत्तरेन्द्र के इन्द्रक विमानों का अभाव है। अर्थात् सब (३१) इन्द्रक विमान सोध के आधोन है ऐशान के नहीं।
सौधर्म कल्प के एक दिषा मम्बंधी गोबद्धो का प्रमाण ६२ है, इनमें से स्व गच्छ (३१) घटाने पर ( ६२-३१)-३१ अवशेष रहे। यहो सानत्कुमारमाहन्द्र में प्रथम पटल में एक दिशा सम्बंधो अंगमा बद्धों का प्रमाण है। इमी प्रकार पूर्व पूर्व युगल क प्रथम पटल के एक दिशा सम्बंधी श्रेणीबद्धों के प्रमाण में से अपने अपने पटल प्रमाण गच्छ घटाने पर उत्तरोत्तर युगलों के प्रथम पटल के एक दिशा मम्वधी श्रेणी बद्धों का प्रमाण प्राप्त होता है। जैस :- सौधर्मशान में ६२. सानत्कुमार माहेन्द्र में । ६२-३१ )-- ३१, ब्रह्म ब्रह्मोत्तर में (३१-७)-२४, लान्नव कापिष्ठ में (२४-४)=२०. शुक्र महाशुक्र में । २०-२-१८ सतौर सहस्रार में (१८-१)=१७ मानतादि चार कल्पों में (१७-१= १६. अधान वेयक में ( १६ - ६ )=१०, मध्यग्र वेयक में ( १०-३) ७. उपरिमय बेयक में (७-३) = ४ और नब अनुदिशों में { ४-३-१ गोबद्ध विमान एक दिशा सम्बन्धी है। इन श्रेणीबद्ध विमानों के प्रमाण को दक्षिणेन्द्र औक्षा तीन मे और उत्तरेन्द्र अपेक्षा एक से गुणा करने पर, तथा जहाँ दक्षिणेन्द्र उत्तरेन्द्र को कल्पना नहीं है, वहां चार से गुणा