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त्रिलोकसार
गाथा:४७३
इतः श्रेणीबद्धानामदस्थितस्वरूप निरपति
पामट्ठी सेढिगया पदामिदे चउदिसामु पचेयं । पडिदिसमेककेक्कोणं अणुद्विमाणसरेककोचि ॥ ४७३ ।। द्वाषष्टिः अंगिगनानि प्रथमेन्द्र चतुर्विशासु प्रत्येकं ।।
प्रतिदिगमेकैकोने अनुदिशानुनरे एकमिति ।। ४७३ ।।। पासट्ठी। प्रथमेन्द्र के चतुदिक्ष प्रत्येक अंगीन बिमामानि प्राष्टिभवन्ति । इस उपरि द्वितीयपरलायो प्रतिविमेककोन चेत् उपर्युपहिणीवनप्रमाणानि | यावानुविधायामनुत्तरे चकमेवावशिष्यते । प्रत्र पक्षिणोचरेन्द्रविभागेन संकलितपनामयमविधान मुख्यते । सौधर्मस्य कविक -
गीबवान ६२ विकत्र त्रिभिप्रेरिणतानि १८६ अपमाविः उत्सरं ३ पच्छ ३१ अत्र होमसंकलितमाविश्य धनमानीयते। पद ३१ मेगेण विहीरणं ३. दुभाजिवं १५ उत्तरेश ३ संगुरिण ४५ इवं ऋणं पावजुवं १८६ मस्मिन् प्रभवे ऋणं ४५ अपनयेत १४१ पद ३१ पुरिणवं ४३७१ इदं सौरमंबेणीवप्रमाणं स्यात् । अत्रेन्द्र ३१ प्रक्षेपे कृते एवं ४४०२। एवमीशाने प्रावि ६२ उत्तर १ गच्छ ३१ मारमा संकलितधनमानेतब्यम् १४५७ ईशाने विन्दकप्रक्षेपो नकरण्यः उत्तरेन्द्राणामिन्द्रकाभावास । सौधर्मस्पैविक परीयडेषु ६२ स्वगमछे ३१ अपनीते शेवं ३१ समकुमारमाहेन्द्रयोरेशविक पीबाप्रमाणं स्यात् । प्रनय ३१ स्वस्थाकथे ७ प्रपनीते दोषमुपरित कविःखीवनप्रमाणं त्यात सौ-ऐ, ६२। स-मा, ३१ 1-4, २४ । ला-का, २. । शुक-महा, १८ । श-स, १७ । मा-४, १६ । अघोष देयक, १.म-प्र.७ । उप०६, ४ । नक, १। एतस्मिनेवणोद्धप्रमाणे बभिरणेन्द्रापेक्षमा विभिर्गुणिते प्राविः उत्तरेन्द्रापेक्षया एकम गुणित माविः। सा-६३ । मा-३१ । प्र-म, ९६ । ला-का, ८०। शुभ-महा, ७२ । श-स. ६ । मा-४, ६४। सपोवेयक, ४.। म-4, २८। उप., १६ । नबानुदिशायर्या ४ । सराः सा-३ । मा-१ । उपरि सबंध चतस्रः ४ | उत्तरा: पास्तु स्वस्वपटलप्रमारणं स्यात् सनत्कुमारावो ७।४।२।१।१।६३।३।३ । १ इस्थमाशुतर. पर मारवा नं उपर्युपरि बक्षिणोतरेन्द्राणामेवमानेसव्यं ॥ ४७३ ॥
यहाँ से आगे शीन्द्ध विमानों के अन्यस्थान का स्वरूप कहते है :
पायार्थ :-प्रथम इन्द्रक विमान की चारों दिशाओं में बासठ बासठ श्रेणीबद्ध विमान है। इसके ऊपर द्वितीयादि पटलों की प्रत्ये का दिमाग में एक एक कम होते हुए अनुदिश और अनुत्तर को प्रत्येक दिशा में एक एक ही अंगोबद्ध है ।। ४७३ ।।
विशेषार्थ:-प्रथम कल्प युगल में ३१ इन्द्रक विमान हैं। इनमें से प्रथम ऋतु इन्द्रक विमान की चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में ६२-- ६२ श्रेणीबद्ध विमान अवस्थित हैं । इसके मागे दूसरे, तीसरे व चोथे आदि छन्द्रकों में व उत्तरोत्तर एक एक कम (६१, ६., ५९ आदि) होते हुए अनुदिश और अनुत्तर इन्द्रक विमानों की चारों दिशाओं में मात्र एक एक ही श्रेणीबद्ध विमान अवशेष