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________________ पापा ४७१-४७२ वैमानिक लोकाधिकार मिगिरि । साभिरिचूलिकोपरि बालाप्रान्तरे स्थितः ज ट बिनद्रकः सिद्धक्षेत्रादयो द्वादशयोवनप्रमाणेन सर्वार्थसिद्धिस्तिष्ठति ॥ ४७० ॥ 'मेरुतलादृदिव" इत्यादि गाथा ( ४५८ ) में कहे हुए अर्थानुसार क्या सयंत्र विमानों का अवस्थान है ? इस प्रश्न के परिहार में कहते हैं :– गाथा : नाभिगिरि को चूलिका के ऊपर बाल का अग्र भाग प्रमाण अन्तर छोडकर ऋतु विमान स्थित है, तथा सिद्धक्षेत्र से बारह योजन प्रभाग भांचे सर्वार्थसिद्धि नाम का इन्द्रक विमान अवस्थित है || ४७० || विशेषार्थ :- सुदर्शन मेह को चलिका के ऊपर बाल का अग्र भाग प्रमाण अन्तर छोड़ कर प्रथम ऋतु विमान अवस्थित है, और सिद्धक्षेत्र से बारह योजन नीचे अन्तिम सर्वार्थसिद्धि नामका इन्द्र विमान स्थित है। अर्थात् सुदर्शन मे की चूलिका के एक बालाग्र ऊपर से सिद्धक्षेत्र से १९ योजन नीचे तक का जो क्षेत्र है, उसमें ऊध्र्वलोक की अवस्थिति है । कल्पानामितरेषां च विक्रियादीनां सोमानमाद ४०६ सगसग वरिमिंदयवयदं कप्पावणीणमंत खु । कप्पाददवणिस्स य अंतं लोयंतयं होदि ।। ४७१ ॥ ५२ हवक स्वकच रमेन्द्र कध्वजदण्ड: करुपावनीनां अन्तः खलु । कल्पातो शावनेश्च अन्तः लोकान्तकः भवति ।। ४७१ ।। are | स्वकीय स्कीम चरमेन्द्र कध्वजव एड: कल्पादीनामन्तः लघु स्यात् । कल्पातीलाबमेरतो लोकस्यान्तो भवति ॥ ४७१ ॥ कल्प और कल्पातीतों की (विक्रिया आदि की ) सीमा कहते हैं: गावार्थ :- अपने अपने अन्तिम इन्द्रक का ध्वजादण्ड ही [ अपनी अपनी ] कल्प अवनी का अन्त है, और जहाँ कल्पातीत अवनी का अन्त होता वहीं लोक का अन्त है ।। ४७१ ।। विशेषार्थ :- अपने अपने अन्तिम इन्द्रक का ध्वजादण्ड हो अपनी अपनी कल्प अवनी का अन्त है । जैसे :- प्रभा नामक अन्तिम इन्द्रक के ध्वजा दशा पर सोधनं युगल का चक्र नामक अभिम इन्द्रक के ध्वजादण्ड पर सानत्कुमार युगल का अन्त है। इसी प्रकार आनतादि कल्पों के अच्युत नामक अन्तिम इन्द्रक के ध्वजा दण्ड पर सम्पूर्ण कल्प अवनी का अच्छा है, तथा कल्पातीत अवनी का जहाँ अन्त है वहीं लोकका अन्त 1 अथेन्द्रकाणां विस्तारमाह माणुसखिपमाणं उडु सव्व तु जंबुदीवसमं । उभयविसेसे रुऊणिदयभजिदे दु हाणिचयं । ४७२ ||
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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