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चिलोकसार
बायत:४७२
मानुषक्षेत्रप्रमाणं ऋतु सर्वायं तु जम्बुद्वीपसमं ।
उभयविशेष रूपोनेन्द्रक भक्तं तु हानिचयम् ।। ४७२ ।। माशुसलित । मानुषक्षेत्रमा ४५००००. अविनक सर्भिसिखोग तु सम्बुद्वीपसम १ ला उमयोविशेषे शोषिते ४४ लक्षरूपन्यूनेमकं ६२ भक्त ७०६६७ को स्वमिन्नक' प्रति हानिवयं स्यात् पश्य विवरणं पश्चोत्तरचरवारिंशत्रतेम्यः पस्मिन् ७०४६७ को अपनी ४४२९३हितीयेन्द्रकप्रमाणं स्यात् । एवं यावदेकलशमयतिधते तावापनोते तत्तदुसरोत्तरेन्द्रप्रमाणे स्थान। ४७२ ॥
इन्द्रक विमानों का विस्तार कहते हैं
गापा:-प्रथम ऋतु इन्द्रक विमान का विस्तार मनुष्य क्षेत्र (काई द्वीप ) के बराबर और अन्तिम सर्वार्थसिद्धि इन्द्रक विमान का विस्तार जम्बूद्वीप के बराबर है। उन दोनों के प्रमाण को परस्पर घटाकर शेष में, एक कम इन्द्रक प्रमाण का भाग देने पर हानि ( वृद्धि)चय का प्रमाण प्राप्त होता है ।। ४७२॥
विशेषा:-मानुष क्षेत्र का प्रमाण ४५००.०० योजन | १८००००००००० मील ] है अत। इतने ही विस्तार वाला ऋतु नामक प्रथम इन्द्रक विमान है, तथा अम्बूद्वीप का प्रमाण १००००० योजना ४०००००००० मील ] है, और इसना ही प्रमाण सर्वार्थसिविनामक अन्तिम इन्द्रक विमान का है। इन दोनों को परस्पर घटाने पर ४४०.००० योजन पोष रहे। इनमें एक कम इन्द्रक के प्रमाण (६३-१) का भाग देने पर प्रत्येक इन्द्रक के हानिचय का प्रमागा प्राप्त होता है। यथा४५99009-122200 =U०६६७३३ योजन हानि चय का प्रमाण है। इसे ४५००.०० योजनों में से घटाने पर ४४२६०३२ योजन दूसरे इन्द्रक का प्रमाण है। इसमें से पुनः हानिचय का प्रमाण घटा देने पर तीसरे इन्द्रक का प्रमाण प्राप्त होगा। इस प्रकार जब तक एक लाख योजन अवशेष म रहे, तब तक घटाते जाना चाहिए । यथा
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