SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घिलोकसार गाया : ४६८ से ४७० विशेषार्थ :-तीसरे ब्रह्मयुगल में मरिष्ट, सुरस, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर ये चार, चौथे छान्तव युगल में ब्रह्महृदय और लान्तव ये दो, पांचवें शुकयुगल में एक शुक्र तथा छठे शतार युगल में एक शतार इन्द्रक अवस्थित है। आणद पाणदपुप्फय मातक तह मारणच्चदवसाणे । तो गेवेज सुदरिसण अमोह तह सुम्पयुद्धं च ॥ ४६८ ।। बसहर सुमणामा सुषिमालं सुमणसं च सोमणसं । पीदिकरमाइच्चं चरिमे सम्बत्थसिद्धी दु ।। ४६९ ।। आनतप्राणतपुष्पक शातक तथा धारणाच्युतावसाने । ततः वेयके सुदर्शन अमोघ तथा सुप्रवुद्ध च || ४६८ || यशोधरं सुभद्रनाम सुविशालं सुमनसं च सौमनसं। प्रीतिकरं आदिश्यं चरमे सर्वार्थसिद्धिस्तु ॥ ४६९ ।। माय । पानतं प्रारणतपुष्पह शातक तपा पारणाच्युतमितीन्द्रनामानि पानताअयुताबसाने त्य: । ततो धेयकेषु सुदर्शन बमोघं तथा सुप्र ४६८ ॥ असहर । यशोधरं सुभद्र नाम सुविशाल सुमन व सौमनस प्रीतिहरं नवानुविशायामारित्येन्द्रक चरम सर्विसिबीन्द्रक ॥ ६ ॥ - पाथार्थ :- आनत, प्राणत, पुष्पक, शानक, झारण और अच्युत ये छह आनतादि में, तथा इनके बाद प्रवेयक में सुदर्शन. अमोध, सुप्रबुद्ध, यशोधर, सुभद्र, सुविशाल, सुमनस, सौमनस और प्रीतिकुर ये नव इन्द्रक हैं। आदित्य इन्द्रक एवं अन्त में एक सथिसिद्धि नामका इन्द्रक ___ विशेषापं:- मानतादि चार कल्पों में आनत, पायात, पुष्पक, शातक, आरण और अच्युत ये छह इन्द्र क विमान हैं, तथा नो में देयक में कम से सुदर्शन अमोघ, सुप्रबुद्ध, यशोधर, सुभद्र, सूविशाल, सुमनस, सौमनस और प्रीतिकर ये नय इन्द्रक है। नो अनुदिनों में एक आदित्य इन्द्रक और पांच अनुत्तरों में एक सर्वार्थसिद्धि नापक इन्द्रक विमानों का अवस्थान है। मेस्तलादु दिवड्वमित्यादिगाथोक्तार्थे सर्वत्र विमानानि तिष्ठन्ति किमिति प्रश्ने परिहारमाह णाभिगिरिचलिगुवरि वालगंतर द्वियो हु उडु इंदो । सिद्धीदो धो बारह जोयणमाणम्हि सबढ़ ।। ४७. ।। नाभिगिरिपूलिकोपरि बालाग्रान्तरे स्थितः हि ऋविन्द्रकः । सिद्धितः अष: द्वादशयोजनमाने सर्वापः ॥ ४७० ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy