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________________ गया। ४६७ वैमानिक लोकाधिकार पृष्टकं गर्ज मित्रं प्रभञ्जन वनपाल नां गरुडं च । लाङ्गलं बलभद्र व चक्र चरमं च अष्टात्रिंशत् ॥ ४६६ ।। ४०७ नलिनं च काञ्चनं रोहिलं चञ्चद उड्डविथ ऋबिरेन पं ॥ ४६४ ॥ मदद ऋद्धीशं श्च । चचकं दचिरं शङ्क' स्फटिक' तपनीयं मेघं प्रहारिप्रं पद्म लोहितं वा नग्मावतं प्रभवं (३१) ॥ ४६५ ॥ पिटुक। पृष्टकं गजं मित्रं प्रभं प्रजनं वनमालं नागं गरुडं च लाङ्गलं बलभयं च चरमेन्द्र क चक्रं इति ( ७ ) सोधर्मादिचतुष्के पिण्डेनाष्टात्रिंशविन्द्र नामानि ॥ ४६६ ॥ उक्त इन्द्र विमानों के नाम छह गाथाओं द्वारा कहते हैं गाथा: - ऋतु, त्रिमल, चन्द्र वल्गु, वीर, अरुण, नन्दन, नलिन, कान, रोहित, चच, मस्तु ऋद्धी, बैड, रुचक, रुचिर, अङ्क, स्कटिक, तपनीय, मैत्र, अन हारिद्र, पद्म, लोहित, वस्त्र, नन्द्यावर्त, प्रभङ्कर, पृष्ठक, गज, मित्र, प्रभा, अञ्जन, वनमाल, नाग, गरुण, लाङ्गल, बलभद्र और अन्तिम चक्र नामा इन्द्रक हैं। इस प्रकार अड़तीस इन्द्रक है ।। ४६४, ४६५, ४६६ ।। रिसुरसमिदिवां वचरचाहिदलांत वयं । सुक्कं खलु सुक्कगे सदर विमाणं तु सदरदुगे ।। ४६७ ।। अरिसुरसमिति ब्रह्म ब्रह्मोत ब्रह्म हृदयलान्तव के । शुकं खलु शुकद्विके शतारविमानं तु शतारयुगे || ४६७ ॥ ७ नन्दन, विशेषा:- १ ऋतु, २ चन्द्र, ३ बिमल, ४ वल्गु ५ वीर. ६ अरुण ९ का १० रोहित ११ च १२ मरुत, १३ ऋद्धी, १४ वंयं ५५ रुचक १६ रुचि १८ स्फटिक, १६ तपनीय २० मेघ, २१ अअ २२ हारिद्र २३ पद्म २४ लोहित, २५ वज्र, २६ नन्द्यावर्त २७ प्रभाकर, २८ पृष्ठ २९ गज ३० मित्र और ३१ प्रभा ये ३१ इन्द्रक विमान सौधर्मेशान नामक प्रथम युगल में अवस्थित है । १ अञ्जन, २ वनमाल, ३ नाग, ४ गरुड, ५ लाङ्गल, ६ बलभद्र ७ ओर चक्र इन सात इन्द्रक विमानों का अवस्थान मानत्कुमार माहेन्द्र नामक दूसरे युगल में है । इस प्रकार चार स्वर्गों के ( ३१+७) ३८ इन्द्रक विमान हैं । नलिन, १७ अंक रिसुरसरिसुरसमिति ब्रह्मब्रह्मोत्तरनामानीस्कारिण ब्रह्मयुगे ब्रह्मवयं सान्तवकमिति द्वयं लागतयुगे शुक्रयुगे खलु शुकेन्द्र शारद्विके शतार विमानेन्द्रकम् || ४६७ ॥ गाधार्थ:-अरिष्ट, सुरस, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर ये तीसरे युगल के ब्रह्महृदय और लान्तव ate युगल के शुकविक का शुक्र और शतार युगलका शतार नामक इन्द्रक विमान है ।। ४६७ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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