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त्रिलोकसाठ
एक ओर एक ये क्रम से इन्द्रक विमान हैं। इनके ऋतु विमानादि
है ।। ४६२ ।।
विशेषार्थ :- सौधर्म युगल में ३१ इन्द्रक, सानत्कुमार युगल में सात, ब्रह्म युगल में ४, लान्तय युगल २, शुक्र युगल में एक शतार युगल में एक मानतादि चार कल्पों में ६ इन्द्रक, तीन अधस्तन ग्रंवेयकों में इन्द्रक, तीन मध्यम प्रवेयकों * इन्द्रक तीन उपरिम अंबेयकों में ३ इन्द्रक, ९ अनुदिशों में एक और पांच अनुत्तरों में एक इन्द्रक विमान है। ये इन्द्रक विमान ६३ हैं. और इनके सट ही नाम है। एक एक प्रतर में एक एक ही इन्द्रक विमान होता है ।
एतेषामिन्द्र कारणामुद्धन्तिरं तनामावतारं चाह
: ४६३ से ४६६
सठ नाम
एक्के कइंदयस्य य विचालमसंखजोपणपमाणं । पाणं णामार्ण बोच्छामो आणुपुष्धीको ।। ४६३ ।। एकैकमिन्द्रस्य च विचालं असंख्यात योजनप्रमाणं । एतेषां नामानि वक्ष्यामः आनुपूर्व्या ।। ४६३ ।। green | एकैकमिन्द्रस्यान्तरालमसंख्यातयोजनं स्यात् । एतेषामिव का नामानि चानु पूर्ण वक्ष्यामः ॥ ४६३॥
इन इन्द्रकविमानों का ऊर्ध्वं अन्तर और इनके नाम का अवतार कहते हैं
गाथार्थ :- एक एक इन्द्रक के बीच का अन्तराल असंख्यात योजन प्रमाण है। इनके नामों को पूर्वी कम से कहेंगे ।। ४६३ ।।
विशेषार्थ :- सुगम है ।
उक्त द्रकाणां नामानि गाथाष्टकेनाह
उडुविमलचंदवम् वीररुणं गंदणं च गलिणं च । कंचण रोहिद चंचं मरुदं रिड्डिसय वेलुरियं । ४६४ ॥ नग रुचिरंक फलिहं तवणीयं मेघमम हारिदं । पउम लोहिद व मंदावतं पहुंकरयं । ४६५ ।। विद्रुक गजभिषा अंजण वणमाल णाग गरुडं च । लंग बलभद्दं च य खक्कं चरिमं च बहतीसो ।। ४६६ ।।
ऋतुविमलचन्द्रवल्गुवीरानन्दनं च नलिनं च ।
कानं रोहितं चचत् मस्तु ऋद्धीशं बंडूर्यम् ।। ४६४ ॥ रुचकं रुचिरं अङ्क स्फटिकं तपनीय मेघ अभ्रं हारिदं । पद्म लोहितं वच नन्द्यावर्तं प्रभङ्करं ॥ ४६५