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गाषा । ४६२
वैमानिकलोकाधिकाय
४०१
है स्वर्गों के नाम
_ विमानों की संख्या
क्रमांक
स्वर्गों के नाम , विमानों की संख्या
सौधर्म
ऐशान
सानत्कुमार
माहेन्द्र
'३२ लाख ( ३२००००० ) ११ शनार
(६हजार) | २८ लाख ( २८०००००)| १२ महस्रार २९८१) | १२ लाख ( १२०००००), १३ आनत प्रागात ४४० या ४०. | ५ लाख ( ८०००००) | १४ | आरण अच्युत २६० या ३०० ) २०.०६६)
| १५ | ३ अघस्त न वेयक (४लाख) १९६९०४)
३ मध्यम .
१. ३ उपरिम , (५० हजार २४९५८
१८ अनुदिश
दाह्मोत्तर
लान्तव
२५.४२
कापिष्ठ
.२०
१६
अनुतर
(४० हजार
महाशुक्र
| १९९४
योगफल-४६७.२३ है।
इदानी प्रथमादिस्वर्गप प्रतरस्याप्रतिपादनार्थ मिन्द्रकाणा प्रमाणं निरूपयति
इगितीससत्त चचारि दोष्णि एक्केश्क छक्क पदुकप्पे । तित्तिय एक्केकिदियणामा उडमादिवेवट्ठी ।। ४६२ ॥ एकत्रिशत्सप्त चत्वारि द्वे एकमेक षट् कं चतुः कल्पे ।
त्रीणि त्रीणि एकमेकं इन्द्रकनामानि ऋत्वादित्रिषष्टिा ॥ ४६२ ।। इगितीस । सौधर्मयुग्मे एकत्रिशविनकारिंग सनत्कुमारयुग्मे सप्तेन्द्रका रिण ब्रह्मयुग्मे चस्वारोगकारिण लान्तमयुग्मे द्वोन्नके शुरुयुग्मे एकमिन्ध शतारयुम्मे एकभित्रक मानतावितुषु कस्पेषु पजिन्द्रकाणि । अधस्तनादिपु प्रवेयकेपु प्रत्येक' त्रीणि श्रीणीन्द्र काणि नवानुविशापामेकमिन्द्रक पञ्चानुसरे कमिन्द्रक । एतेषां तु विमानावी कारण नामानि त्रिष्टिभवन्ति ॥ ४६२ ॥
प्रथमादि स्वर्गों में प्रतर संख्या प्रतिपादन करने के लिए इन्द्रक विमानों के प्रमाण का निरूपण करते हैं
गायार्थ :-इकतीस, सात, चार, दो, एक, एक, चार कल्पों में छह, तीन, नीन, तीन,