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________________ त्रिलोकसार पापा १५० से ४६१ । साम्प्रतं सौधारिपु विमानसंख्यां गाथात्रयेण कथयति बत्तीसवाबीसं चारस अट्ठेब होति लक्खाणि । सोहम्मादिचउक्के लक्खचउक्कं तु बमदुगे ।। ४५९ ।। ततो जम्माण तिए पण्णासं ताल छस्सहरमाणं । सत्तसयाणि य आणदकप्पचउक्केसु पिंडेण ॥ ४६० ॥ एक्कारसत्तसमद्दियसयमेक्काणउदी णव य पञ्चेव ।। गेवेजाणं तिसिस अणुदिस्साणुत्तरे होंति ॥ ४६१ ।। द्वात्रिंशवष्टाविंशतिः द्वादश अष्टव भवन्ति लक्षाणि । सौधर्मादिचतुष्के लक्षचतुष्कं तु ब्रह्मटिके ।। ४५६ || ततो युग्माना अये पश्चाशत् चत्वारिंशत् षट्सहनामा । सप्तशतानि च मानतकल्पचतुष्केपु पिण्डेन ॥ ४६० ॥ एकादशसप्तसमधिकशत एकनवति। नव च पञ्चैव । ग्रेवेयाणा त्रिनिगापु दिशा भन्नति Iic । बत्तीसट्टा । हात्रिशतनाष्टाविंशतिलक्षाढावशालक्षाप्टलक्षाण्येव यथासेल्यं सौधर्माविचके विमानानि भवन्ति । ब्रह्मब्रह्मोत्तरे मिलित्वा लक्षचतुष्कमितानि विमानानि भवन्ति ॥ ४५६ || तत्तो जुम्भा। ततो लान्तवादियुग्मत्रये यथासंयं पश्चाशसहस्राणि छत्वारिंशात्सहस्राणि षट्सहस्राणि विमानानि मानतादिकल्पचतुष्के पिरन सप्तशतानि विमानानि भवन्ति ।। ४६. ॥ एक्कारसत्त । एकावशमधिकशतं सप्तसमषिकशात एकनपतिः नब च पश्य ध्यासंख्य प्रधस्तनाविप्रवेषकारगां त्रिरित्रषु अनुविशायामनुसरे व विमामानि भवन्ति ।। ४६१ ॥ तीन गाथाओं द्वारा सौधर्मादिकों के विमानों की संख्या कहते हैं गाथार्य:-बत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख और आठ लाख कम से सौधर्मादिक चाय कल्पों के विमानों का प्रमाण है, तथा ब्रह्म औच ब्रह्मोत्तर इन दोनों के ( मिलाकर ) विमानों का प्रमाण चार लाख है इसके बाद के तीन युगलों में कम से पचास हजार, पालीस हजार मोर छन्न हजार हैं, तथा बानतादि चार कल्पों के विमानों का प्रमाण सम्मिलित रूप से सात सौ है । एक सो ग्यारह एक सौ सात, इक्यानवे, नव और पांच ये कम मे तीन तीन वेयकों, अनुदिया और अनुनर विमानों का प्रमाण है ।। ४५९, ४६०, ४६१ ।। (तीनों वागानों का विशेषार्थ:-स्वर्गों के सम्पूर्ण विमानों की संख्या [ चाट मगले पृष्ठ पर देखिए ]
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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