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[ ५५ ] पाथा सं.
विषय जम्बूदीपस्थ चन्द्र सूर्य से समुद्र जल का अन्तर
६५६ १०२ पातालों का अन्तर ९.३-10४ सण समुद्र के प्रतिपालक नागक्रमार देवों की संख्या त्ययस्थान, व्यास ६६२ ९.५-१०५ विगत पातालों के पाश्वभागों में स्थित पर्वत और उन पर रहने वाले देवों का
कचन tut-६॥ सवण समुद्र के सम्यन्तर देवों के द्वीप ६१३-४१५ भवणसमुद्र व काळोवक समुद्र में कुमानुषों के १६ द्वीप, तटों से उन द्वीपों का सतर, वीपों का विस्तार व ऊंचाई
६६६ ११६-१२. कुभोग भूमि के मनुष्यों को वाकृति और रहने के स्थान
७०२ १२१ १६ द्वीपों की संख्या का विशेष विवरण
७०४ १२२-२४ कुभोप भूमि में उपजने के कारण ९२५-९३६
धातुकी खण्ड व पुष्कराघ ५२५-६२. इष्वाकार व कुलाचल आदि पर्वत व नदी आदि का कथन ॥१८- क्षेत्रों के आकार, विष्कम आदि 4.-६३६ विदेह क्षेत्र के कच्छादिक देशों का, पर्वतों का, नदियों का व वनों का
आयाम मादि
घातको वृक्ष व पुष्का वृक्ष ९१५ गंगा आदि नदियों का पर्वत पर बहने का प्रमाण मध्य लोक के स पर्वतों का अब नाघ
७२८ ९३७-९४२
मानुषोतर पर्वत ३५-३६ मानुषोत्तर पर्वत का स्वरूप
७२६ ३-४१ मानुषोत्तर पर्वत पर स्थित कूट १४२ मानुषोत्तर पर्वत का ध्यास, अपाष
ढाई द्वीप से बाहर १४३-६० कुणाल गिरि व वचक गिरि सपा उनके कूट सपा उन पर रहने वाली देवांगनामों
का कार्य १५१-६६६ द्वीप व समुद्रों के स्वामी देव ९६६-६७ नन्दीश्वर द्वीप का विशेष रूपन
४२ 10-१.१४ बत्रिम चस्यानयों का विशेष कथन
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