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प्रिलोकतार
गाया:४५६
_ विशेषार्थ :-भधोवेयक, मध्यम प्रबेयक और उपरिमग्रंयेयक के भेद से मुख्य में ग्रेबेयक तीन प्रकार हैं। इनमें से प्रत्येक के ऊच मध्य और अधः के नाम से तीन तीन भेद हैं इस प्रकार नवग्रंवेयक हैं। इनके ऊपर नव अनुदिश और उनके ऊपर पांच अनुनर विमान हैं। यही सब फल्पातीत विमान हैं, इनमें अहमिन्द्र रहते हैं। इन विमानों में सभी अहमिन्द्र हैं, इन्द्र की कल्पना का अभाव है इसीलिए इन विमानों को कल्पातीत संज्ञा है । यथा :
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नयानुदिशविमानानां पश्चानुनरविमानानां च नामानि गाथाद्वयेनाह
अच्चीय मच्चिमालिभि इरे बहरोयणा अणुद्दिसगा। सोमो य सोमरूले अंके फलिके य आइच्थे ।। ४५६ ।। अनिः अचिमालिनी वैरो वैरोचनानि अनुदिशकानि ।
सोमश्च सोमरूपः अङ्कः स्फटिकः च आदित्यं ॥ ४५६ ॥ पच्चीव । प्रविधिमालिनी रा रोचनाख्यानि प्रत्यारि गोवानि विगतानि । सोमतोमरूपास्फटिकास्यानि बत्वापि पिक्षिणतानि प्रकोएंकानि । पावित्र्य मध्येन्द्रक एतानि नानुविशाख्यानि ॥ ४५६ ॥
दो गाथाओं द्वारा नव भनुदिश और पाँच अनुत्तरों के नाम कहते हैं :--
गाया :-अचि, अचिमालिनी, वैर, वैरोचन, सोम, सोमप्रभ, अङ्क, स्फटिक और आदित्य ये नव अनुपिश विमान हैं। ४५६ ।।