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गाथा:४५५ वैमानिकलोकाधिकार
४०१ विशेषापं:-सोलह स्वगों के कुल आठ युगल हैं। जिसमें मध्य के चार युगलों में से पूर्व युगल ब्रह्म, लान्तव और अपर युगल महाशुक्र और सहस्रार अर्थात् ब्रह्म ब्रह्मोत्तर, लान्तव कापिष्ठ, शुक्र महाशुक्र और शतार सहस्रार इन चार युगलों अर्थात् आठ स्वर्गों के चार ही इन्द्र है, अतः ये चार करूप है। शेष ऊपर नीचे के दो दो युगलों अर्थात् आठ स्वगों के आठ इन्द्र है, अत: माठ कल्प ये हुए। इस प्रकार सोलह स्वर्गों के बारह इन्द्रों की अपेक्षा बारह कल्प है। यथा:
स्वर्ग नाम
इन्द्र । इन्द्र संख्या
पर
इन्द्र संख्या
इन्द्र
स्वर्ग नाम
अच्युत
इन्द्र
प्रारण
प्रणित
आनत
-
सहस्रार
सतार
-
महाक
कापिष्ट
-
लान्तव
ब्रह्मोत्तर
-
माहेन्द्र
सानत्कुमार सौधर्म
ऐशान
अथ कल्पातीतविमामनामान्याह
हिटिममज्झिमउपरिमतिचिय गेवेज्म णव अणुद्दिमगा। पंचाणुचरगा विय कप्पादीदा हु अहमिदा ।। ४५५ ।। प्रघस्तनमध्यमोपरिमत्रिस्त्रिकाणि ग्रेवेगाणि नत्र अनुदिशानि ।
पश्चानुत्त रकाणि अपि च कल्पातीता हि अहमिन्दाः॥ ४५४ ।। हिटिम । अघस्तनमध्यमोपरिमनिस्त्रिकारिण प्रेयेयकारिण मवानुधिशानि पञ्चानुत्तराणि व कल्पातीविमानानि तेषु स्थिताः महामन्त्राः भवन्ति ॥ ४५५ ॥
अब कल्पातीत विमानों के नाम कहते हैं--
गाथार्य :---अधस्तन, मध्यम और उपरिम तीन तीन वेयक अर्थात् नवनवेयक हैं। उनके ऊपर नय अनुदिश्च और पांच अनुत्तर विमान है। ये सब कल्पातीत विमान है, इनमें अहमिन्द्र रहते हैं ।। ४५५ ।।