________________
बाबा । ४४८-४४६-४५०
ज्योतिकाधिकार
ज्येष्ठाः ताः पृथक् पृथक् परिवारचतुः सहस्र देवीनाम् । परिवारदेवीसह प्रत्येक मिमाः विकृर्वन्ति ॥ ४४८ ॥
३९७
जे ताम्रो पृथक् पृथक् परिवारचतुः सहलदेवीर्ना ता देण्यो ज्येष्ठा इमाः। परिवारदेवी सहा
संख्या प्रत्येकं विकुर्वन्ति ॥ ४४८ ॥
गाथार्थ :- उन ज्येष्ठ ( पट्ट) देवागनाओं की पृथक् पृथक् चार चार हजार परिवारदेवियाँ होती हैं। ये प्रमुख देवियाँ अपनी अपनी परिवार देवियों के प्रमाण (४००० ) ही विक्रिया करती है ॥ ४४८ ॥
विशेषार्थ :- चन्द्र सूर्य की उन प्रमुख देवांगनाओं के पास चार चार हजार परिवारदेवियाँ है और ये मुख्य देवियाँ चार चार हजार ही विक्रिया करती हैं। ज्योतिष्क देवीनामायुः प्रमाणमशह
जोड़ सदेवाऊ सगसगदेवाणमयं होदि । सम्वणिगिट्ठसुराणां बचीसा होंति देवी भो ।। ४४९ ।। ज्योतिष्कदेवीनामायुः स्त्रस्त्रक देवानामर्थं भवति ।
सर्वनिकृष्टसुरायां द्वात्रिंशत् भवन्ति देव्यः ॥ ४४६ ॥
जोइस | ज्योतिष्कदेवोनामायुः स्वकीयस्वकीयदेवानामर्द्ध भवति । मत्र सर्वनिकृष्टसुराण शिष्यो भवन्ति । मध्ये यथायोग्यं वैषीसंख्या अवगतष्यः ॥ ४४ ॥
ज्योतिष्क देवाङ्गनाओं की आयु का प्रमाण कहते है :
गावार्थ :-- ज्योतिष्क देवियों की आयु अपने अपने देवों को मायु के अघं भाग प्रमाण होती है । सर्व निकृष्ट देवों के बत्तीस ही देवियों होती हैं ॥। ४४६ ।।
विशेषार्थ :- ज्योतिष्क देवांगनाओं की आयु अपने अपने ( भर्तार ) देवों की आयु प्रभागा होती है । सर्व निकृष्ट अर्थात् होन पुण्य वाले देवों के बत्तीस ही देवियों होती है। देवांगनाओं की संख्या यथा योग्य जानना चाहिए।
अथ भवनत्रये उत्पद्यमानजीवानाह
के अर्धभाग
मध्य में
उम्माचारि मणिदाणणलादिमुद्दा अकाम णिज्जरिणो । हृदवा सबलवरिया भणत्तिय जंति ते जीवा ॥। ४५० ।। उम्मार्गचारिणः सनिदाना: अनलादिमृता अकामनिर्जरिया: । कुतपसः शबलचारित्रा भवनत्रये याति ते जीवाः ।। ४५ ।। उम्मग्मचारि। उन्मार्गचारिणः सनिवाला बनलाविमृता एकामनिर्जरिणः कुतपसः शबलचारित्राये ते जीवा भवमत्रये यान्ति ॥ ४५० ॥