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त्रिलोकसार
गाथा:४४७-४४०
इन्द्विनशुल्कवितरेषु लक्षं सहस्र' शतं च महपल्यं ।
पल्यं दक तु, तारासु वरमवर पादपायाभ ॥ ४४६ ।। दिए। यो इने शुक्रे गुणे इतस्मिन्बुधमङ्गलशम्यायो यथासं लक्षवर्षसहितपल्य सहावर्षसहितपल्यं शतवर्षसहितपल्यं एकपल्यं प्रबंपल्यं तारकाणा नक्षत्राणां - बराबरमापुः पाबपावाब पल्यचतुर्भागः पल्पामभाग इस्पर्णः ॥ ४४६ ॥
पांच प्रकार के ज्योतिपीदेवों की आयु का प्रमाण कहते है :
गायार्ग :-चन्द्र, सूर्य, शुक्र, गुम एवं अन्य ग्रहों की मायु क्रम से एक लाख व सहित एक पल्य. हजार वर्ष सहित एक पल्य, सौ वर्ष सहित एक पल्य, एक पल्य और पाषा माधा पत्य है, ताराओं (और नक्षत्रों ) को उत्कृष्टायु पाव पल्य और जघन्यायु पल्य के आठवें भाग प्रमाण है।॥ ४४६॥
विशेषार्ष:-चन्द्रमा की उत्कृष्टायु एक पत्य और एक लाख वर्ण, सूर्य की एक पल्य और एक हजार वर्ष, शुक्र की एक पल्प और १०० वर्ष, गुरु को एक पल्य, बुध, मङ्गल और पानिश्वरादि की उत्कृष्टायु आधा बाधा पस्य है 1 ताराओं एवं नक्षत्रों की उत्कृष्टायु पार 11पल्प और जघन्यायु ३ पल्य प्रमाण है । सूर्यादिकों की जघन्यायु पल्य ( जम्बूद्वीप प० पृ. २३३
चन्द्रादित्ययोर्देवीथाहयेनाह
चन्दामा य सुपीमा पहंकरा मनिचमालिगी चंदे । घरे दुदि पुरपहा पहंकरा मच्चिमालिगी देवी ।। ४४७ ॥ चन्द्राभा च सुसीमा प्रमरा अचिमालिनी चन्द्रे ।
सूर्ये द्य तिः सूर्यप्रभा प्रभङ्करा अत्रिमालिनी देव्यः ।।४४७॥ पन्नाभा । चनामा व मुसीमा प्रभङ्गए। परिमालिनीति चतस्रश्चनपट्टोम्यः । सूर्य पुनः युतिः सूर्यप्रभा प्रभङ्करा मनिमालिनोति पट्टवेव्यः ।। ४४७ ।।
दो गाथाओं द्वारा चन्द्रसूर्य की देवाङ्गनाओं का उल्लेख करते हैं
गापा :-चन्द्राभा, सुसीमा, प्रभङ्करा और अचिमालिनी ये चारों, चन्द्र की पट्टदेविमा हैं। धति, सूर्यप्रमा, प्रभङ्करा और अचिमालिनी ये चारों, सूर्य को पट्टदेविया है ।। ४४७ ।। विशेषार्थ:-सरल है।
जेठा तामो पुह पूह परिवारचगुस्सहस्सदेवीणं | परिवारदेविसरिसं पचयमिमा विउव्वंति ।। ४४८ ।।