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________________ गाथा : ४४५-१४६ मोतिलोकाधिकार कृत्तिकादीनो परिवारलारा आह - एक्कारमयसहस्सं सगमगतारापमाणसंगुणिदं । परिवारतारसंखा किचियणक्खचपहृदीर्ण ।। ४४५ ।। एकादशशतसहन स्वकस्वकनाराप्रमाणसंगुणितम् । परिवारतारासंख्या कृत्तिकानपात्रप्रभृतीनाम् ।।४४५ ॥ एकारसय । एकादशीसरताधिकसहनं १११ स्वकीयस्वकीयताराप्रमाणसंगुणितं बेव कसिकानक्षत्रप्रभृतीनो परिवारतारासंख्याप्रमाणं याद ॥ ४४५ ।। कृतिका आदि नक्षत्रों की परिवार ताराएं कहते हैं :--- गाथा :-एक हजार एक सौ ग्यारह को अपने अपने ताराओं के प्रमाण से गुणित करने पर कृतिका आदि नक्षत्रों के परिवार ताराओं का प्रमाण प्राप्त होता है ।। ४४५ ।। वियोषार्थ:-१९११ को अपने अपने ताराओं के प्रमाण से गुणर करने पर परिवार ताराओं का प्रमाण प्राप्त होता है। जैसे परिवार ताराओं | नक्षत्र परिवार ताराओं | । परिवार ताराओं नक्षत्र की संख्या संख्या परिवार तारामों की सख्या संख्या 10 २२२१ १२२१ कृ०११११x६६६६६ मघा ११११४४४४४४ अनु० ११११x६-६६६६ धनि० ११११४५= रो०११११४५= ५५५५ फो० ११५१४ २-२२२२ ज्येष्ठा ११५१४३-३३३३ शत० १११११११ मृग०११११ ४ ३ ३३३३ उ फा. १९११४२ =२२२२ मूल १९९१४१=९९९९ पू.भा. ११११४२= १२३३२१ अ११११ x १=११११ हस्त ११११४५=५५५५ पू.षा. ११११४४=४४४४ उ.भा. ११११४२= पुन०११११४६= ६६६६ चित्रा ११११४१११११ उ.षा ११११४४=४४४४ रेवती ११११४३२= पुष्या११११४३- ३३३३ स्वाति ११११४ १=११११ अभि. ११११४५३३३३ अश्वि. १९११४५= मा०५५११४६=६६६६ |विशा.११११४४= ४४४४ श्रव० ११११४३- ३३३३ भरणी १९११४३ । । ३३३३ पञ्चप्रकाराणां ज्योतिष्कदेवानामायुः प्रमाणामाइ इंदिणसुक्कगुरिदरे लक्खसहस्सा सयं च सहपल्लं । पन्लं दलंतु तारे घरावरं पादपाद || ४४६॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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