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क्रमांक ।
गाथा : ४४२ से ४४४
सेरणाय । सेनातिभा गजपूर्षगाथमिमा गजापरगात्रनिभा नावानिभा हमस्य शिरः सदृशा चुल्लीपाषाणनिभातारा: कृत्तिकादीनि नक्षत्राणि भवन्ति ।। ४४४ ॥
उन ताराओं के आकार विशेष को तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं :
गावार्थ: कृतिका आदि नक्षत्रों की उपयुक्त ताराएं कमसे वीजना सदृश गाड़ी की उद्धिका सहश, मृग के शिर सहया, दीपक, तोरणा, छत्र वल्मीक ( बॉबी ) गोमूत्र, गर ( वारण ), युग, हाथ, उत्पल (नील कमल ), दीप, अधिकरण, बरहार, बीणाशृङ्ग, वृश्चिक ( बिच्छू ) दुष्कृतवापी, सिंह कुम्भ, राज कुम्भ, सुरज मृदङ्ग ) गिरते हुए पक्षी, सेना, हाथी के पूर्व शरीर, हाथी के उत्तर शरीर, नाव, अश्व के शिर और चुल्हे के पत्थर सदृश व्याकार वाली होती हैं । ४४२, ४४३, ४४४
विशेषार्थ :- कृतिका आदि २८ नक्षत्रों के ताराओं की संख्या और उन ताराओं के आकार का निरूपण (२+३) पाँच गाथाओं द्वारा किया गया है। इन पांचों गाथाओं का विशेषार्थं निम्न प्रकार है
नक्षत्र
:
कृतिका
२ रोहणी
३] मृगशीर्षा
आर्द्रा
५ पुनर्वसु
६ पुष्य
७. आश्लेषा
११ हस्त
चित्रा
१२
१३ स्वाति
१४
तारामों को
संख्या
६ नारा
विशाला
५.
३
६
५
द
मघा
४
९ पूर्वा फाल्गुनी २
१० उत्तरा " २ "
w
१
17
४
"
中
"
"
त्रिलोकसार
99
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ताराओं के आकार
ज्ञ
* क्रमांक
बीजना सदृश
गाड़ी की उद्धिका | १६
" वल्मीक (बांबी) ११
गोमुत्र
" शर (वाण)
[१५ अनुराधा
ज्येष्ठा
मृग के शिय सदृश १७
दीपक सहश १८ पूर्वाषाढा
तोरण
09
नक्षत्र
१९. उत्तराषाढा
२० अभिजित्
श्रवण
सहय २२ घनिष्ठा
युग
हाथ
" उत्पल (नील कमल २६ रेवती
दीप सदृश
६७ अश्विनी
अधिकरण सदृश २८ भरखी
मूळ
२३ शतभिषा
२४ पूर्वाभाव०
→ २५
उत्तराभाद्र•
ताराओ
की
संख्या
६
| ३
| ९
४
४
३
५
११९
२
२
३२
५
३
ताराओं के आकार
विर (उत्कृष्ट) हार सहश
वीरशृङ्ग सहग
वृश्चिकः
दुष्कृत वापो महश
सिंह कुम्भ
गज कुम्भ
मुरज ( मृदङ्ग) गिरते हुए पक्षी
सैन्य ( सेना )
हाथी के पूर्व शरीर सहा
P
50
"
Th
" उत्तर " #
नाव
अश्व के शिर सहश
चूल्हे के पत्थर