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________________ ३९४ क्रमांक । गाथा : ४४२ से ४४४ सेरणाय । सेनातिभा गजपूर्षगाथमिमा गजापरगात्रनिभा नावानिभा हमस्य शिरः सदृशा चुल्लीपाषाणनिभातारा: कृत्तिकादीनि नक्षत्राणि भवन्ति ।। ४४४ ॥ उन ताराओं के आकार विशेष को तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं : गावार्थ: कृतिका आदि नक्षत्रों की उपयुक्त ताराएं कमसे वीजना सदृश गाड़ी की उद्धिका सहश, मृग के शिर सहया, दीपक, तोरणा, छत्र वल्मीक ( बॉबी ) गोमूत्र, गर ( वारण ), युग, हाथ, उत्पल (नील कमल ), दीप, अधिकरण, बरहार, बीणाशृङ्ग, वृश्चिक ( बिच्छू ) दुष्कृतवापी, सिंह कुम्भ, राज कुम्भ, सुरज मृदङ्ग ) गिरते हुए पक्षी, सेना, हाथी के पूर्व शरीर, हाथी के उत्तर शरीर, नाव, अश्व के शिर और चुल्हे के पत्थर सदृश व्याकार वाली होती हैं । ४४२, ४४३, ४४४ विशेषार्थ :- कृतिका आदि २८ नक्षत्रों के ताराओं की संख्या और उन ताराओं के आकार का निरूपण (२+३) पाँच गाथाओं द्वारा किया गया है। इन पांचों गाथाओं का विशेषार्थं निम्न प्रकार है नक्षत्र : कृतिका २ रोहणी ३] मृगशीर्षा आर्द्रा ५ पुनर्वसु ६ पुष्य ७. आश्लेषा ११ हस्त चित्रा १२ १३ स्वाति १४ तारामों को संख्या ६ नारा विशाला ५. ३ ६ ५ द मघा ४ ९ पूर्वा फाल्गुनी २ १० उत्तरा " २ " w १ 17 ४ " 中 " " त्रिलोकसार 99 ね ताराओं के आकार ज्ञ * क्रमांक बीजना सदृश गाड़ी की उद्धिका | १६ " वल्मीक (बांबी) ११ गोमुत्र " शर (वाण) [१५ अनुराधा ज्येष्ठा मृग के शिय सदृश १७ दीपक सहश १८ पूर्वाषाढा तोरण 09 नक्षत्र १९. उत्तराषाढा २० अभिजित् श्रवण सहय २२ घनिष्ठा युग हाथ " उत्पल (नील कमल २६ रेवती दीप सदृश ६७ अश्विनी अधिकरण सदृश २८ भरखी मूळ २३ शतभिषा २४ पूर्वाभाव० → २५ उत्तराभाद्र• ताराओ की संख्या ६ | ३ | ९ ४ ४ ३ ५ ११९ २ २ ३२ ५ ३ ताराओं के आकार विर (उत्कृष्ट) हार सहश वीरशृङ्ग सहग वृश्चिकः दुष्कृत वापो महश सिंह कुम्भ गज कुम्भ मुरज ( मृदङ्ग) गिरते हुए पक्षी सैन्य ( सेना ) हाथी के पूर्व शरीर सहा P 50 " Th " उत्तर " # नाव अश्व के शिर सहश चूल्हे के पत्थर
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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