________________
गाथा : ४३८-४३९
क्योतिर्लोकाधिकार
बढमदसमे यारसमे कित्तिय विसाह अणुराहा । जेट्ठा कमेण सेसा पपणारममम्हि अठेव ।। ४३८ ।। हत्थं मूलतियं विय मियसिग्दगपुस्सदोणि अद्वैव । अट्ठपहे णक्खता तिटठंति हु चारसादीया ।। ४३९ ।। षष्ठाष्टपदकादश कृतिका विशाखा अनुराधा । ज्येष्ठा कमेण शेषाणि पञ्चदशे अष्टव ॥ ४३८ । हस्त: मूल श्रय अपि मृगशीर्षद्विक पुष्यद्वयं अष्टे व ।
अनुपये नक्षत्राणि तिष्यन्ति हि द्वादशादीनि ।। ४३६ ।। छट्टमासमे । षष्ठमवश मैकादशे मार्ग कृत्तिका, विशाखा, अनुराधा, क्येा कमेण पान्ति। शेषाण्यष्टव नक्षत्राणि पञ्चदशे मार्गे चरम्ति ॥ ४३८ ॥
हत्यं मूल । हस्सः मूलश्यं मूलपूर्वाषाढोत्तराषामित्ययः। मृगशीर्षादिक मृगशोषनित्यः । पुष्यवपं पुष्पाश्लेषेत्यर्थः । स्पष्टेष एतानि नक्षत्रारिंग प्रथमाविषथेषु छाववादीनि प्रष्टसु पथेषु तिष्ठन्ति ॥ ४३६ ॥
गायार्थ :-छटो, आठवे वसमें और ग्यारहव मार्ग में क्रमशः कृतिका, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र भ्रमण करते हैं। गेप हस्त, मूलत्रय ( मूल, पूर्वापाका उत्तराषाढ़ा) मृगशीर्ष द्विय ( मृगशीप, आर्द्रा) और पुष्पद्य ( पुष्य और आश्लेषा ) ये आठ नक्षत्र चन्द्रमा की अन्तिम १५ वीं श्रीथी में सवार करते हैं। इस प्रकार बारह आदि नक्षत्रों को मादि करके चन्द्रमा की पन्द्रह वीथियों में से आठ बीथियों के ऊपर सम्पूर्ण नक्षत्र स्थित हैं ।। ४३८. ४३६ ॥
विशेषार्प:-चन्द्रमा को १५ गलियां हैं। उनके मध्य में २८ नक्षत्रों की - ही गलिया है। उनमें निम्नलिखित नक्षत्र सञ्चार करते हैं।
(१) चन्द्र की प्रथम पोथी में – अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा. शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी गे १२ नक्षत्र, (२) तृतीय वीथी में पुनवंसु और मघा. ( ३ ) छठवीं बीथो में कृतिका, (४) सातवीं में रोषणी तथा चित्रा, (५) आठवीं में विशाना, (६) दरावीं में अनुराधा, (७) ग्यारहवीं में ज्येष्ठा और (८) १५ वीं ( अन्तिम ) बोधों में हस्त, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, मृगशीर्षा, बादा, पुष्प तथा आश्लेषा ये माद नक्षत्र सञ्चार करते है। यथा:
। कृपया चित्र अगले पृष्ठ पर देखिए ।